Book Title: Pratishthapath Satik
Author(s): Jaysenacharya, 
Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur

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Page 276
________________ भतिष्ठा २७० अथ दीक्षाक्षावतारः। अब दोक्षा वृक्षनिका वर्णन कहै हैंन्यग्रोधो मदगंधि सर्जमशनं श्यामे शिरीषोर्हता. मेते ते किल नागसर्जजटिनः श्रीस्तिदुकः पाटलाः। जंब्वश्वत्थकपित्थनंदिकविटाम्राजुलश्चंपको जीयासुर्वकुलोऽत्र वांशिकधवौ शालश्च दीक्षाद्रुमाः ॥ ८३५ ॥ अहत तीर्थंकरोंका दीक्षा प्रधान वृक्ष प्रथम तो १ वट २ सप्तच्छद अर्थात् सत् नो ३ साल ४ साल ५ नियंगु नियंगु ७ श्रीखंड ८ नागर ६साल १० पलास ११ तींदू १२ पाटल १३ जंवू १४ पिप्पन १५ दधिपण १६ नंदिक्ष १७तिलक १८ अाम्र१६ अशाक २० चंपा २१ मोलसरो २२ वांस २३ धव २४ साल येह अनुक्रम चौईस जयवंते वर्ती ॥८५॥ ओं ह्रीं णपो अरहताण जिनदीक्षारता अत्रावतरंतु अवतरंतु स्वाहा । एतेषु मध्ये यन्नाम्नो जिनस्य वृक्षाभावेऽपि एषु मध्ये योऽन्यतमं भवेत् स एव ग्राह्यः । आगे कहिये है कि जिस जिनेश्वरको जो वृक्ष होय उस हो अधोभाग उस जिनेद्रका तप कल्याण करना। कदाचित् वसा वृक्ष नहीं मिले तो इनि चौईसमें मिल सो ही ग्रहण करना ॥ सहेतुकवने गत्वा मंडपांतरितांबरे । दरं सभानिवेशं च कुर्यादिंद्रो विधिप्रदः॥ ८३६॥ ऐसे पालकीमें आरूढ होय वनमें जाय जिस सहेतुक नाम सामान्य वनमें जहां मंडप निर्माण किया ह तहां सभाका निवेश किंचिन्मात्र || दूर, विधिको कर्ता इंद्र करे॥८३६ ॥ BHAENAME%a4% E KIDNEKABADSASARSANEODESSESAR RSAR २७० Jain Educati o nal For Private & Personal Use Only elibrary.org

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