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प्रतिष्ठा
पाठ
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बुद्ध्वा स्वस्वनियोगेन तपःकल्याणमूर्जितं ।
चतुर्णिकाया देवेंद्रा बाजग्मुः कृतसंस्तवाः ॥८३१॥ अब चतुर्णिकायके देव जे हैं ते अपना अपना नियोगकरि प्रकट भया तपःकल्याणने जानिकरि स्तुति करते संते प्रावते भये ॥३१॥
संबोध्य पितृन् स्वकुटुंबलोकान् पौरांस्तथांतःपुरमाशु याने ।
विनिर्मित वा शिविकादिरूपे समारुरोह प्रतिपन्नमृतिः ॥८३२॥ अर भगवान अपना माता पिताने तथा अपना कुटुंबके लोकनिने तथा नगरनिवासो जनने तथा अपना अंतःपुरने संबोधि शोध शिवि|| कादिरूप देवनिकरि रचित यानमें प्रसन्नतापूर्वक आरोहण करतो भयो॥३२॥
अत्रैवान्यासां प्रतिमानामुपरि पुष्पांजलिः। ऐसे भगवानने पालिकी पर विराजमानकरि अन्य विवनिपरि पुष्पांजलि क्षेपणो ।
वादिलगंधर्वजयेतिशब्दैः स्तब्धीकृताशानिचये मुहर्ते ।
शुभे दिना|त्तरभाजि जिष्णो ग्रंथ्यकालः शुभदो विधेयः॥ ८३३ ॥ अब पालकी पर प्रारोहण समय अनेक वादित्रनिका शब्द तथा गंधर्व आदिका जय जय शब्दकरि व्याप्त भया है दिशांका समूह जाम || ऐसा दिनाधका अपर भाग शुभ मुहूर्तमें श्रीजिन जयनशीलका निग्रंथकाल शुभकू देनेवारा करना ॥८३३ ॥
त्रिसप्तपद्यां स्वकुटुंबिविद्याधरामरेरूढसुवंशदेशा।
अनेकभूपार्थिजनैरुपास्या जयत्वलभ्या शिविका जिनस्य ॥८३४ ॥ बहुरि शिविकारूढ़ भगवानकू निज कुटुबके जन अर विद्याधरनितें तीन सात पेड़ लेय अपर देवनिकरि धारण किया है वांस दंड जाका | अर अनेक राजारूप याचकनिकरि सेवनियोग्य ऐसी अलभ्य जिनेंद्रकी पालकी जयवंती रहो ॥३४॥
BALUSARASVACANCE
२६॥
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