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पतिष्ठा
२७४
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हृदयमें, र दक्षिण कांधायें, ल ग्रीवामें, व वामा कंधमें, श हृदय आदि दहणा हाथ पर्यंतमें, प हृदयादि वाम हात पर्यंतमें, स हृदयादि दहणा पादमें, ह हृदयादि वामपादमें, त हृदय आदि पेट पर्यंत लिखना - स्थापन करना ।
ऐसें अनादिसिद्ध मंत्र जपै सो ऐसा - गमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरीयाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सब्बसाहूणं । चचारि मंगलं - अरहंत मंगलं, सिद्धमंगलं, साहू मंगलं, केवल पराणत्तो धम्मो मंगलं । चत्तारि लोगुत्तमा- श्ररहंत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा । चत्तारि सरणं पव्वज्जामि, अरहंत सरणं पव्वज्जामि, सिद्ध सरणं पव्वज्जामि, साहू सरणं पव्वज्जामि, केवलिपणत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामि । झौं झौं स्वाहा । पढि एक सौ आठ बार जप करै, ता पीछे सुवण अरु लोंग तथा जाय आदि सुगंध हाथमें लेय जो संस्कार मंत्र है सो पढ़ि प्रतिमा ऊपर नाखें । सो येह है— श्रीं ह्रीं इह अर्हतविवमें सम्यग्दर्शन संस्कार स्फुरायमान होहु ॥ १ ॥ ओं हीं इस अर्हतवित्रमें सम्यग्ज्ञान संस्कार स्फुरायमान होहु ॥ २ ॥ यों हीं इस अर्हतवित्रमें सम्यक् चारित्र संस्कार स्फुरायमान होहु ॥ ३ ॥ ऐसें ग्रीं ह्रीं तो आदिमें घर संस्कार स्फुरायमान होहु अंतमें पढ़ि स्थापन करें, सब जगै । सो ही संतप संस्कार ४ सद्वी चतुष्टयसंस्कार ५ अष्टप्रवचनमातृका संस्कार ६ शुद्धयष्टकप्राप्ति ७ सकलपरीषहजय ८ त्रियोगपूर्वक संयमसे नहीं बिगडना कृतकारित अनुमोदनकरि अनविचार संस्कार १० शीलसप्तक संस्कार ११ दशअसंयमोपरम १२ पंचेंद्रियनिर्जय १३ संज्ञाचतुष्टयनिग्रह १४ दशविधघधारण १५ अठारा हजार शीलकी प्राप्ति १६ चौरासी लाख उत्तरगुण १७ अतिशययुक्तधर्मध्यान १८ श्रप्रमत्तसंयम १६ सुदृढ तेजकी प्राप्ति २० अप्रकंपक्षपकश्रेणी २१ अनंतगुणविशुद्धि २२ अथाममशकरणमाप्ति २३ पृथक्त्ववितकंवीचार प्रणधि २४ अपूर्वकरण प्राप्ति २४ अनिवृत्तिकरण प्राप्ति २६ वादरकषायचूर्णन २७ सूक्ष्मकषायचूर्णेन २८ सूपसांपरायचारित्र २९ पक्षीणमोह ३० यथाख्यातचारित्रमाप्ति ३१ एकत्ववितकेंवीचारध्यानावलंबन ३२ घातिघातसमुद्र तकेवलज्ञान ३३ धर्मतीर्थप्रवृत्ति ३४ सूक्ष्मक्रिय शुक्लध्यानं परिणतत्व ३५ शील ईशरत्व ३६ परमसंवर ३७ योगचूर्णकृति ३८ योगायुतिभागित्व ३६ समुच्छिनक्रियावस्त्र ४० निर्जरा के परमकाष्ठारूढ़ ४१ सर्व कर्मक्षय प्राप्ति ४२ अनादिभवराव नविनाश ४३ द्रव्यक्षेत्र कालभाव परावर्तन निःक्रमण ४४ चतुगतिपरावृत्ति ४५ अनंतगुणसिद्धत्व प्राप्ति ४६ मों ह्रीं प्रदेह सहज ज्ञानोपयोग चारित्र संस्कार स्फुरायमान होहु ४७ प्रों ह्रीं इस अरविंवमें प्रदेहस होत्थदर्शनोपयोगैश्वर्यप्राप्ति संस्कार स्फुरायमान
॥४८॥
ऐसे ये महा अडचालीस संस्कार धारण करावे घर अन्य विंवनि पर भी यथा योग्य धारण करावे अर पुष्पांजलि क्षेपं । पीछे सभाका विसर्जन कर वादित्र आदि सामिग्रीको विसर्जन करें अर आचार्य इद्र ऐसे दोऊ गुप्त रीतिसे वेदिका परि ल्यावै, स्थापन करै । इहां ही चौईस तीर्थकरों की तिथि तपकल्याणकी उद्दे शकरि पूजा करें।
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HURRARE
पाठ
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