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प्रतिष्ठा
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अथ निःक्रमणकल्याणारोपः । अब व्यवहारमात्र राज्य चिह दिखाय तपकल्याण प्रारंभ करिये है
पूर्व लोकांतिका देवा कल्प्या अष्टौ सुबुद्धयः।
श्रुतांबुनिधिपारज्ञाः धीराः सदुपदेशने ॥ ७६६ ।। इहां पूर्व आठ संख्यावाले सुबुद्धि अर शास्त्रसमुद्रके पारगामी अर समीचीन उपदेशमें धीरबीर ऐसे लौकान्तिक देव कल्पना करने योग्य हैं॥६॥
इत्युक्त्वा लौकांतिकदेवोपरि पुष्पांजलि क्षिपेत् ।
ऐस लोकांतिक देवोपरि पुष्पांजलि क्षेपनी। अब भगवानके वैराग्य भावना दिखावे हैं
अतिमृदुपरिपाकात् कर्मणां पूर्वजन्मावधृतजिनपतित्वोद्भावनानां प्रभवात् ।
किमपि लघुनिमित्तालंबनं प्राप्य धीमानुपधिनिगडबंधानुजहाति स्म बुद्धौ ॥ ५० ॥ कर्मनिका अत्यन्त कोमल विपाचनते तथा पूर्व जन्ममें धारण कियी तीर्थंकर प्रकृति पैदा करनेवारी भावनाका प्रभावत कछ विद्युत्पात ही शदि योरा भी निमित्तका आलंबन प्राप्त होय वह धीमान् उपाधि जे द्वि प्रकार परिग्रहरूप बेडीका बन्धन तिनै अपना भावमैं छोड़तो भयो ॥८ ॥
अहो संसाराब्धौ बहुगतिपरावर्तविकटे पतदुर्दुःखोर्मिप्रकरचलनभ्रांतिसतते।
परिश्च्योतद्धर्मप्रवहणतयागाधदुरितजले मज्जोन्मजाविव बहुकृतौ कर्मवशगैः ॥८०१॥ सो विचार ऐसा है कि अहो ! बडा आश्चर्य है इनि कर्मनिका वश भये संसाररूप समुद्र जो बहुगति चतुर्गतिमें परावर्तन करि विकट | अर पडती है खोटी दुःखरूप लहरका समूह तिनका चलना सोही भ्रांति तिनि करि भरथा पर अपार पापरूप जलयुक्त ऐसामें नष्ट भया धर्मरूप नौकापणा करि मज्जन उन्मज्जन बहु प्रकार किये ॥ ८०१॥
PURANGALORCAMEREKA
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