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प्रतिष्ठा
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पर ये महात्माके मन वचन काय योगनिकरि आकिंचन्यभाव तप है सो शरण्य होतो भयो। तेही मुक्तिरूप उत्तम स्त्रीका स्वयंवरपणात प्राप्त भये पर जन्म मरण आपदाका मार्गसेंच्युत भये पर मोक्ष सुखमें मग्न, स्वयं होनेवारे ते ही धन्य हैं वा कारण अब मेरे शीघ्र ही शुद्धात्माको उदय जागो॥२०॥
इत्थं भावनया विशुद्धमनसस्त्रैलोक्यचूडामणि
- सिद्धत्वं कृतकृत्यतावगमनात् पूर्ण लभंते सुख । इत्येवं मनसि स्थितं प्रकटयंतः स्वं नियोगं पुर
स्कृत्यैवामरपूजिताः सुरवरा भाजग्मुरुद्धात्मनः ॥ ८२१॥ या प्रकार अनियादि भावनाकरि विशुद्ध भयो है मन जिनको ऐसे धन्य पुरुष कृतकृत्यताका लाभते तीन लोकमें चुडामणि समान सिद्ध पदने अर पूर्ण सुखने प्राप्त होय हैं। ऐसे श्रीभगवानका मनमें तिष्ठता भावने प्रकट करता अर अपना नियोगने अग्रकरि देवनिकरि पूजित लौकांतिकदेव ऋद्धिकरि प्रसन्न है आत्मा जिनको ऐसे हुवे संते आवते भये ॥२१॥
अथ लौकांतिकदेवागमनप्रतिज्ञानाय पुष्पांजलि क्षिपेत् ।
ऐसे लौकांतिक जातिका देव आगमनके अर्थि पुष्पांजलि क्षेपना। अब लौकांतिक देवनिका वर्णन करै हैंसारखतादिमदसंख्यकुलप्रसूता एकं भवं समधिगम्य शिवालयाप्याः।
स्यावादशांगविनिवेदितविश्वतत्त्वा आगत्य संस्तुतिमिषाद विहितोपदेशाः ॥ २॥ सारस्वत आदिस आदि आठ कुलमें उत्पन्न भये पर एक भव मनुष्यपनाको पाय मोक्षरूप 'स्थानमें प्राप्त होनेवारे द्वादशांगवाणीकरि संसारका समस्त तत्त्वने जाननेवारे ऐसे ये देव भगवानके समीप आय स्तुतिके मिषत कश्वो है उपदेश जिनि ऐसे होते भमे ॥ २२ ॥
स्वामिन्नद्य जगत्त्रये प्रसरतां मांगल्यमाला यतः
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