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प्राय्यः पापहरोऽधीशो निःकषायो गुणाग्रणीः। प्रतिष्ठा
पावनं परमज्योतिः परमेष्ठी सनातनः ॥ ७७६ ॥ २५२ __ अर प्रकर्षकरि अग्रगण्य है, अर पापहर्ता है, अधीश है, पर कषायनिकरि रहित है, भर गुणमें मुख्य है, पावन है, परमज्योति है, पर-16 मेष्टी है, सदाकाल स्थिर है ॥ ७७६ ॥
अव्यक्तो व्यक्तमूर्तिस्तमलक्ष्यो लक्षणातिगः ।
सुलक्ष्म्यो लक्षणज्ञेयः पापशत्रुरुदारधीः ॥ ७७७ ॥ अप्रगट है अर प्रगटरूप भी है, अर अलक्ष्य है, अरु लक्षणकरि रहित है, अरू सुलक्ष्य है, अर लक्षणनिकरि जानवे योग्य है, अर पापरूप वैरोका शत्रु है, अर उदारबुद्धि है।। ७७७॥
प्रणीतार्थः प्रमाणात्मा सुनयो नयतत्त्ववित् ।
प्रणधिः प्रणवो नायो ज्ञानदर्शननायकः ॥ ७७८ ॥ पर निश्चयरूप कियो है पदार्थ जानै सो है अर प्रमाण स्वरूप है, सुंदर नयवान है, अर नय नैगमादिकनिका तत्त्वने जानवावालो है | ध्यानरूप है अर ओंकारस्वरूप है अर अनादि है अर ज्ञानदर्शनको स्वामी है ॥ ७७८॥
पुराणपुरुषोऽहार्यरूपो रूपातिगो महान् ।
कामहा कमनो काम्यः कामगामी कलानिधिः ॥ ७७६ ॥ हे भगवन् ! तुम पुराण कहिये प्राचीन पुरुष हो, अर अनुपम रूपका धारी हो अर रूपकरि रहित हो अर पहंत पुरुष हो पर कामने इनि13/ वा वारा हो भर मनोहर हो अर कामनारहित हो अर कामगामी कहिये स्वतंत्र विहार करनेवाला हो पर कलाका निधि हो॥७७६ ॥
कम्रः कामयिता कांतः कामनातीतकामुकः। कालुष्यहंता कामारिः कोपावेशहरो हरः ॥ ७८०॥
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