Book Title: Pratishthapath Satik
Author(s): Jaysenacharya, 
Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur

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Page 259
________________ प्रतिष्ठा अर कमनीय हो पर अनेक जनों करि बांछा करनेवारा हो पर मनोहर हो अर संसारीक कामनारहित बडी कामनावारा हो पर पापका । हंता हो अर कामका बरी हो अर शांतपुद्राकरि कायका प्रशने हरनेबारा हा पर हर कहिये दुःख का हर्ता हो ॥७८०॥ २५३ स्वयंभूविधिरुत्साहधीरः सुकृतभावनः। स्रष्टा भूतपतिः साक्षी त्रैलोक्यपरमेश्वरः ॥ ७८१॥ अर स्वयमेव ज्ञानचारित्रकरि उत्पन्न हो ऐसा हो पर विधिरूप हो अर उत्साहमें धोरवोर हो अर पुण्यरूप है भावना जाकै ऐसा हो अर आदि ब्रह्मा हो भर प्राण मात्रनिका स्वामी हो, पर साक्षी (प्रत्यक्ष दृष्या) हो अर तीन लोकका परमेश्वर हो ॥७२॥ प्रभूष्णुरधिदेवात्मा विश्वराड् विश्वतोमुखः। विश्वयोनिर्जिष्णारीशः संवदः पुण्यनायकः ॥ ७८२॥ __ अर समर्थ हा अर देवाधिदेव खत्म हो पर लोकका राजा हो, अर सर्वज्ञानरूपो सुखयुक्त हो पर संसारका स्वभावका उत्पचि करने || वारा हो अर जयशील हो पर समर्थ ईश हो पर सुखके करनेवारा हो पर पुण्य का प्रपतन करनेबारे हो ॥७२॥ धर्माबुवाहो धर्मज्ञो वेदविद् वदतांवरः।। भव्यभानुर्मखज्येष्ठस्त्वं हि ब्रह्मपदेश्वरः ॥ ७८३॥ ट्रा अर धर्मका वर्षा करनेवारे हो अर धर्मका ज्ञाता हो पर वेद कहिये ज्ञान ताजाननेवारे हो अर पंडितनिमें मुख्य हो अर भव्यनिके वास्ते सूर्य हो अर यज्ञमें श्रेष्ठ हो अर तुमहो ब्रह्मपद आत्मस्वरूप ताका ईश्वर हो ॥७८३ ॥ भूष्णः स्थिरतरः स्थाष्णुरचलो विमला विभुः। महीयान् जातिसंस्कारः कृतकृत्यो महस्पतिः ।। ७८४॥ अर स्वयं विना उपदेश भवनशील हो पर स्थिर हो पर अपना स्वरूपमें तिष्ठनेवारे हो पर अक्ल हो पा विपन हो पर व्यापक हो अर अतिशय करि बडे हो अर हुवा है संस्कार जाकै ऐसा हो अर कृतकृत्य हो अर उत्सबका स्वामी हो ॥७८४ ॥ CASHAGRA-%ER.S SSSSCRIB%A4%BRECRUtt २५३ ECRECE Jain Education For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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