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भतिष्ठा
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तावदत्र शचीकल्पनं । प्रथम इंद्राणोका स्थापन कहिये हैसौभ्याग्यामलचारुभूषणचरिखालंकृतां पावनी
कल्पवासवभामिनी व्रतगुणैः शीलैर्महाशोभनां । अन्यां वा कृतिकर्मसंग्रहकरी योग्यामुदीक्ष्य ध्रुवं
संदीक्षाप्रतशुद्धये वितनुतामाचार्यवर्यः स्वयं ॥ ७१६ ॥ प्राचार्य प्राप दीक्षा जो प्रतिष्ठारूप वृत्तको शुद्धि अर्थि सौभाग्य ही अमल सुदर भूषण अर चरित्र ताकरि मालंकृत सुंदर भूषण अरू चारित्र ताकरि अलंकृत अर पवित्र अर वृत्त गुणनिकरि और शीलनिकरि महा शोभायमान ऐसी कल्पना किया इंद्रको पलो जो है ताहि तथा अन्य सर्व कार्यने सावधानीकरि करनेवारी योग्यने देखि निश्चय करै कि स्थापन करे॥७१६ ॥
अस्मिन् कर्मणि मात्रुपासनविधावेषाप्रशस्ता भव
- त्वेवं सभ्यजनाः प्रमाणयत सद्धर्मत्वबुद्धयेति तां। मांगल्यादिविभूषणैः कृतमहोत्संहामिमां रक्षय
मंत्रोपास्तितया नियोज्य कुसुमक्षेपं विदध्योत्सवे ।। ७१७॥ अर सकल सभाजन प्रमाण करें कि या इंद्राणो माताकी उपासना विधिमें तथा वस्त्रालंकार देने की विधि प्रशस्त होहू धर्मबुद्धि करि या प्रकार मांगल्य आभूषणनिकरि किया उत्सववाली इसने मंत्रको उपासनाकरि रक्षाबंधन सहित नियोजित करि इस उत्सवमें पुष्पांजलि क्षेपण करें॥७१७॥
इति शचीदेवीप्रतिज्ञानाय पुष्पांजलिः । ऐसें शची देवीकी स्थापना करनी।
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