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मतिष्ठाः
पाठ
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.... ... .... ... ... ... ॥ ७२१ ॥ देवनिकरि मानी सुदर भूषण वस्त्रदान करि सन्मानित कियी ऐसो कुमार अवस्थाको धारण करनेवाली अरु नहीं प्राप्त है पतिसंभोग | विकार जिनि अरु जाति कुलमें उच्च छह संख्यावाली तथा छप्पन संख्यावाली कल्पनाकरि संनियोजित करनी ॥ ७२१ ॥
कुमारिकोपरिपुष्पांजलिक्षेपः। तदुत्तर यज्वा ताभ्यो नानावस्त्राभरणमुकुटादिदानं कुर्यात् । ____ों ही श्री ही धृति कीर्ति बुद्धि लक्ष्मी तुष्टि पुष्टि शांत्यादि दिक् कुमारिका देवी इहां प्राय जिन मातानै सेवो असा कहि कुमारिका ऊपरि 18| पुष्पांजलि क्षेप करना । अरु यज्वा प्रतिष्ठाको घणी इनिकू नाना प्रकारका वस्त्र प्राभरण प्रदान करे।।
इंद्रादिदिग्पतिनियोगकृतावनानि स्थानानि यस्य परितः सुपरिष्कृतानि ।
तद्राजसद्मनि पुरंदरदत्तशिष्टी रत्नानि वर्षयत गुह्यकराजराजः।। ७२०॥ बहुरि इंद्रनिकी आज्ञानुसार कुवेर है सो जाकी चौतरफा इंद्रादि देवनि करि नियोगसे किया है रक्षण जिनिका अर चौतरफ तिष्ठते ऐसे स्थान वेष्टित कर रख्या है ता राजमंदिरमें रत्ननिको वर्षा करो ॥ ७२२ ॥
ओं ह्रीं धनाधिपते अत्यतिसौधे रत्नदृष्टिं मुचतु मुचतु स्वाहा । इत्युक्त्वा सौधोपरि सर्वत्र रमष्टि तथा कुंकुमाक्तपुष्पोत्कर यजमानादयो विस्तृण्वतु। इति रत्नदृष्टिस्थापनं ।
ओं ह्रीं धनादिपति कुवेर अर्हतका महलमें रत्नदृष्टिने करो ऐसे कहि सर्व गृहमें ऊपरि रत्ननिको वर्षा तथा पंचवण तंदुलनिकी वर्षा करै। ऐसे रत्नदृष्टि स्थापन करनी।
सर्वर्तुजानि फलपुष्पविलेपनानि गंधासनोपकरणानि पविलितानि ।
संस्थापयत्वधिगृहं जिनमातृकाया भोगोपभोगरुचिराणि मनोहराणि ॥ ७२३ ॥ पर कुवेर है सो सर्वऋतुके उपजे फल पुष्प चंदनादिक तथा माला आसन आदि अनेक चित्र विचित्र ऐसे मनोहर भोगोपभोगसामिग्री जे हैं तिनि. जिनमाताके गृहमें स्थापन करो॥७२३ ॥
इति जिनमातृसौधे वस्त्रभूषणमंदनादिस्थापनं । ऐसैं जिनमाताका भवनमें अनेक शोभा करें।
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