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प्रतिष्ठा
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अथ यादीनां स्वरूपकृत्यवर्णनं । तथाहि
अब श्री आदि कुमारिका देवोनिका स्वरूप ऐसा सो कहिये है
चतुर्भुजा श्रीर्धृत पुष्पकुंभसच्चामरैर्मातरमुत्सहती | शोभां जगत्यामपुनर्भवतीं दधे चलत्कंकणचारुहस्तैः ॥ ७४ ॥
चारि हैं भुजा जाकै घर धारण किया है पुष्प अर कुंभ अर समीचीन चमर जानै अर माता उत्साहयुक्त करती अर जगतमें कदापि नहीं होनेवारी शोभाने चलायमान कंकणयुक्त सुंदर हस्तनिकरि धारण करती श्री नाम देवी होती भई ॥ ७४० ॥
३१.
लज्जाकुलोद्भूतनितंबिनीनामाभूषणं तां द्विगुणीचकार ।
मातुःपदां भोरुहसेवनानि इलेण चके वरिवस्यमाना ॥ ७४१ ॥
अर सुंदर कुल उपजी स्त्रोनिक लज्जा है सो भूषण है, सो येह ही देवी वा लज्जाने दूणी करतो भई अर छत्रकरि सेवा करती संती माताका चरणारविंदकी सेवाने करती भई ॥ ७४१ ॥
धैर्यं विदधे धृतिनामदेवी सिंहासनस्थार्पणतः सवित्र्याः ।
बैलोक्यनाथप्रसवेन लेोके मान्यत्वसंसूचनताकरस्य ॥ ७४२ ॥
अर धृतिनाम देवी सिहासनका अर्पण माता की सेवा में धैर्य धारण करावती भई । सिंहासन है सो त्रैलोक्यनाथका जन्म करि लोकमें मान्यपणाका देनेवारा है ॥ ७४२ ॥
विस्तारयामास यशोभिवृद्धि कीर्तिः समासादितपुण्यकार्या । जयस्तव मातुरुदीर्य यष्टिं द्वारोपकंठे स्थितिमादधौ सा ॥ ७४३ ॥
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पाठ
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