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प्रतिष्ठा
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सेनायुक्त ईशानादि स्वर्गके इंद्र संयुक्त सौधर्मेद्र है सो उत्तम ऊंचो देवोपनीत ऐरावत हस्तीने रचि पर आप आपके नियोगानुसार इंद्रादिकनिने दंड छत्र आदि उपकरणकरि नियुक्त करावतो भयो । ७६१ ॥
शची समाहूय नमस्कृतांगीं शय्यागृहं त्वं प्रविशेति हर्षात् ।
विश्वांबिकाकुक्षिभवं गृहाण यथा न माता विरहं प्रयाति ॥७६२ ॥ अर बहुरि इंद्र नपस्कारयुक्त है मस्तक जाको ऐसी इंद्राणीने बुलाय करि कहै कि तू माताका प्रति शय्यागृह प्रवेश करि अर हषत जगन्माताका कुक्षित उत्पन्न हुवा बालकने ग्रहण करि परंतु माता वालकका वियोगने नहीं प्राप्त होय तैसें करि ॥ ७६२॥
हर्षोत्सुक्यात्पुलकिततनुः स्वं जनुः सत्कृतार्थ
मन्वाना सा चिरपरिचयाबद्धमोदां सवित्रीं। नाम नामं कपट विधिनाऽन्यं विधायाभकं तं
तेलोक्येशं विकसितमुखं मूनि कुर्वीत संस्थं ॥ ७६३ ॥ ऐस सो इंद्राणी हष अर उत्साह भावतें रोमांचित भया है शरीर जाका ऐसी अर अपना जन्मने धन्य धन्य मानतो संती चिरकाल परिचयतें वृद्धिने प्राप्त भयो है प्रमोद जाकै ऐसी माताने नमस्कार वारंवार करि दूसरा बालकने कपटसे मातापास मेलि विस बालक त्रैलोक्यनाथने प्रसन्नमुख करि मस्तकमें स्थापित करतो भई ॥ ७६३ ॥
अत्रवाचार्यो जिनर्विवानामन्येषां सर्वेषामुपरि पुष्पाणि विकीर्यात् । ऐसे उस समय प्राचार्य अन्य प्रतिविवनिपरि पुष्पक्षेप करें।
दीनानाथानधिपुरमितांस्तोषयन् वांछितार्थान्
___ यज्वा पूजाविरचनधिया जन्मकल्याणपंक्तेः । चातुविशं जिनपमनुभिमंडलं संलिखेत
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