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प्रतिष्ठा २३७
अर आयु नाम गोत्र अर साता वेदनीय कर्मानकू सम रूप उत्फाल करि सर्व प्रकृतिनिका नाशकरि फिरि एक समय में लोकांतकू प्राप्त भयो सो स्वयंभू किंचिन्न्यून चरम देहतें आत्मप्रदेश रचनावालो होय सिद्ध ज्ञायक चतन्य ज्ञान दर्शन वीर्यपनात निर्बल है, सो तू हम करि महान् पूजिये है ॥ ७२८ ॥
इति पठित्वा पंचकल्याणारोपणविधिप्रतिज्ञानाय मूलप्रतिकृत्यग्रे पुप्पांजलितेपः । ऐस' पढ़ि मूलमतिमा अग्र पंचकल्याणका आरोपण वास्तै पुष्पांजलि क्षेपणी ।
तां मूलप्रतियातनां सुरपतिर्गंधाक्तवर्ण्यप्रभां
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निहितां विधाय विनयान्मातुः प्रसूतिस्थले । श्रानीयापि निधापयेत् शुचितरैर्वस्लै रहस्ये रज
न्यर्धे चाल्पतनौ तु तव वसनाच्छन्नां क्रियान्मंत्रवित् ॥ ७२६ ॥
इंद्र राजा है सो उस मूल त्रिकू गंधयुक्त देह लिंपन करि मंजूषामें स्थापि विनयसेतो माताका प्रसूतिस्थानमें ल्याय करि सुंदर धौत वस्त्रनिकरि एकांतमें अरु अर्ध रात्रिमें आच्छादित करै अल्प शरीर नहीं होय तो वहां ही वस्त्र करि मंत्रशास्त्री आच्छादन करें ॥ ७२६ ॥ इति मूलविवाच्छादनं ।
मूलविंची क्रियाकरि अन्यविबनिनै केसरि चंदन करि लिंपन कर ।
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पाड
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