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प्रतिष्ठा
पाठ
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स्वपरसमयविधानं पाठकपठितं यजामि पूजाहं ॥ ६० ।। तीस हजार पदमंयुक्त अरु स्वसमय परसमयका भेदवारा उपाध्यायनि करि पठित अरु पूजाके योग्य ऐसा दूसरा सूत्रकृत नाम अंग जो है ताहि मैं पूजू हूं ॥६०४॥
ओं हों षटत्रिंशत्सहस्रपदसंयुक्तसूत्रकृतांगायाघम् । स्थानांगं द्विकचत्वारिंशत्पदकं पडर्थदशसरणेः ।
एकादिसुभेदयुजः कथक परिपूजये वसुभिः ॥ ६.५ ॥ वियालीस हजार पदयुक्त छ पदार्थनिका एकादि भेद संयुक्त दशमार्गका कहनेवारा स्थानांगर्न अष्ट द्रव्यनिकरि पुज हूँ॥६०५॥
___ों ही द्विचत्वारिंशतपदसंयुक्तस्थानांगायाघम् । समवायांगं लक्षकं चतुरितषष्टीसहस्रपदविशदं ।
द्रव्यादिचतुष्टयेन तु साम्योक्तिर्यत्र पूजये विधिना ॥ ६०६॥ एक लाख चौसठ हजार पद करि विशद अरु जामै द्रव्य क्षेत्र काल भावनिकरि साम्यता बताई असा समवायांगनै मैं पूज़ हूँ ॥६०६॥
ओं ह्रीं एकलक्षपष्टिसहस्रपदन्यासाय समवायांगायार्घम् । व्याख्याप्रज्ञप्त्यंग द्विलक्षसहिताष्टविंशतिसहस्रपदं ।
गणधरकृतषष्टिसहस्रप्रश्नोक्तिर्यत पूज्यते महसा ॥ ६०७॥ ___ अरु दोय लाख अट्ठाईस हजार पदयुक्त अरु गणधरका किया साठि हजार प्रश्नकी है कथा जामै ऐसा व्याख्यामज्ञप्ति नाम अंगर्ने दि बड़ा उत्सवकरि पूजू हूँ ॥६०७॥
ओं ही द्विलक्षाष्टविंशतिसहस्रपदरंजिताय व्याख्याप्रज्ञप्तयेऽर्थे। ज्ञातृधर्मकथांगं शरलक्षसषट्कपंचाशत् ।
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