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प्रतिष्ठा
पाठ
BAPERSARAMSAROK-150
ये चक्रिसैन्यगजवाजिखरोष्ट्रमर्त्यनानाविधस्वनगणं युगपत् पृथक्त्वात् ।
गृह्णति कर्णपरिणामवशान्मुनींद्रास्तानर्पयामि कृतुभागसमर्पणेन ॥६६॥ ___ अरु जे चक्रवर्तीको सैनामै खर गज घोड़ा ऊंट मनुष्य आदिका स्वर शब्दका समुहने एके काल न्यारा न्यारा कण इंद्रियका परिणाम| वश ग्रहण करै हैं तिनि मुनोंद्रनिनै यज्ञभागका समर्पण करि मैं पूजू हूं अर्णोद्धार करू हूँ॥६॥
ओं ही संभिन्नश्रोत्रऋद्धिमाप्त भ्योऽर्घम् । दूरस्थितान्यपि सुमेरुविधुप्रभास्वत्सन्मंडलानि करपादनखांगुलीभिः ।
संस्पर्शशक्तिसहितर्द्धिवशात् स्पृशंतस्तान् शक्तियुक्तपरिणामगतान् यजामि ॥ ६६५॥ | अरु दूर प्रदेशमें स्थित भो मेरु चंद्रमा सूर्यका मंडल जे हैं तिनिने स्पर्शन शक्ति सहित ऋद्धिका वशतं हाथ पाद नख अंगुलीनिकरि स्पश 5 करते अरु तिस शक्ति परिणये साधुने मैं पूजू हूँ ६६५॥
ओं ह्रीं दूरस्पर्शशक्तिऋद्धिमाप्त भ्योऽर्थे । नास्वादयंति न च तत्सदने समीहा तत्रापि शक्तिरमितेति रसग्रहादौ।
ऋद्धिप्रवृद्धिसहितात्मगुणान् सुदूरस्वादावभासनपरान् गणपान् यजामि॥६६६ ॥ अरु जो मुनींद्र नहीं तो आप स्वाद लेवे है अरु नहीं तिनका स्वादमें वांछा है तथापि तिसका ग्रहणमें शक्ति प्रवल होय तिस ऋद्धिकी वृद्धि सहित प्रात्मगुणयुक्त दुरास्वादनमें समर्थ ऐसे मुनिनिने मैं पूजू हूँ॥६६॥
__ओं ही दूरावादनशक्तिऋद्धिप्राप्त भ्योऽयं । उत्कृष्टनासिकहृषीकगतिं विहाय तत्स्थोर्ध्वगंधसमवायनशक्तियुक्तान् । उत्कृष्टभागपरिणामविधौ सुदूरगंधावभासनमतौ नियतान् प्रजामि ॥ ६६७॥
ANGREEMERABADEGORSHASHASARADARSHASIRSA
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