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मुनींद्र हैं ते तिन सिद्धदेवादिकनिका गुणांकी स्तुति निर्मल वचननिकरि करै हैं, ता आवश्यकनै धारै हैं तिनके अग्र पुष्पांजलिनै मैं ते
प्रतिष्ठा
SAGARALSORICAL
___ों ही स्तवनावश्यकसयुक्ताचार्यपरमेष्टिभ्योऽयम् । मलोत्सृजादौ वचनाप्तदोषं प्रतिक्रमेणापनुदंति वृद्धं ।
साधु समुद्दिश्य निशादिवीयदोषान् जहत्यर्चनया धिनामि ॥ ५९९ ॥ मलेत्सर्गादिकमैं कोई समय प्राप्त भया दोषने पतिक्रमण करि दुरि करै हैं, अर वृद्ध साधुनै उद्देश करि रात्रि दिन संबंधी दोषने त्यागे हैं तिनकू पूजन विधि करि प्रसन्न करू हूं ॥५६॥
___ओं ही प्रतिक्रमणावश्यकनिरताचार्य परयेष्टिभ्योऽर्घम् । स्वो नाम चात्माऽध्ययते यदर्थः स्वाध्याययुक्तो निजभानुबुद्धः ।
श्रुतस्य चिंताऽपि तदर्थबुद्धिस्तामाश्रये स्वाभिमतार्थसिद्धयै ।। ६०० ॥ स्व नाम आत्माका है सो ध्याइये जामें सोखाध्याय है ऐसा निजज्ञान बुद्ध सर्वज्ञनै निरुक्त किया है, अर शास्त्रका चितवन भी ताके अर्थि है या स्वाध्यायबुद्दिवारनिनै अपना हितकी सिद्धिके अर्थिं प्राश्रय करू हूँ ॥६००॥
ओं ही स्वाध्यायावश्यककर्मनिरताचार्य परमेष्टिभ्योऽर्घम् । भुजप्रलंबादिविधिज्ञतायाः पौरस्त्यमाप्याधिगमं वहंतः ।
व्युत्सर्गमात्रा वशिनः कृतार्था अस्मिन् मखे यांतु विधिज्ञपूजां ॥६०१॥ भुजप्रलंबन आदि विधिका जाननका अग्रेसरतानै प्राप्त होय ज्ञाननै धारते अरु कायोत्सर्गपात्रके वशीभूत अरु कृतार्थ ऐसे भाचार्य इस यज्ञमैं विधिज्ञ पूजानै प्राप्त होउ ॥६०१॥
ओं ह्रीं व्युत्सर्गावश्यकनिस्ताचार्यपरमेष्टिभ्योऽयम् ।
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