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पाठ
अरु छ लक्षपद जात युक्त अरु समस्त सत्यका भेदका विचारमें निपुण अरु जहां श्रोता वक्ताका गुणनिको कथा है ऐसा सस प्रवाद भतिष्ठा || अंगनै आर्ष मंत्रनिकरि अभिवादन करू हूँ कि स्तुति करू हूं ॥१६॥ १९८
ओं ह्रीं सत्यपवादायार्घम् । श्रात्मप्रवादरसविंशतिकोटिपादान् जीवस्य कर्तृगुणभोक्तृगुणादिवादान् ।
शुद्धतरप्रणयतत्कथनं तु येषु बंदामहे तदभिलाप्यगुणप्रवृत्त्यै ॥ ६२०॥ आत्मपवादके छव्वीस कोटिपद जे हैं तिननै अरु ते जीवका कतृ गुण भोक्तृगुण आदिका कथन करनेवारे हैं अरु जिनमें शुद्धनय और व्यवहारनयाश्रित कथन है तिनकूहम तामै कहे गुणनिकी प्रवृत्त्यर्थ पूज हैं। ६२०॥
ओं ह्रीं आत्मप्रवादायार्घम् । कर्मप्रवादसमये विधुसंख्यकोटीसंख्यानशीतिलयुतान् वसुकर्मणां च ।
सत्त्वापकर्षणनिधत्तिमुखानुवादे पद्यान् स्थितानमितपूजनया धिनोमि ॥२१॥ एक कोटि अस्सीलाख पदसंयुक्त अरु अष्ट प्रकार कर्मनिके सत्त्व अपकर्षण निधत्ति आदि कथनमें स्थित कर्मभवाद श्रुतनै संपूर्ण पूजन | करि प्रसन्न करू हूँ॥६२१॥
ओं हो कर्मप्रवादायार्यम्। प्रत्याहृतेश्चतुरशीतिसुलक्षपद्यान् निक्षेपसंस्थितिविधानकथप्रसिद्धान् ।
न्यासप्रमाणनयलक्षणसंयुजोऽर्चे यागार्चने श्रुतधरस्तवनोपयुक्तान् ॥ ६२२ ॥ प्रत्याहार पूर्वका चौरासी लाख पदनिने निक्षेपका संस्थान विधान आदि कथामै प्रसिद्धनिनै अरु न्यास प्रमाण और नयनिका लक्षक णकू योजनवारे अरु श्रुतके पारगामीनिका स्तवनमें उपयुक्त जो है तिनने इस यागमंडलमें मैं पूजू हूँ॥२२॥
ओं ह्रीं प्रत्याहारपूर्वाया।
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