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वाक्यमानसवलेन समग्राः उग्रदीप्ततपसस्त्रिकगुप्ताः ।
घोरवीर्यगुणभावितचित्ता बोधिलाभमनघाः प्रदिशंतु ॥ २६८ ॥ अरु वचनवली अर मनोवली अर उग्रदीप्त तपके धारक अरु तीन गुप्ति संयुक्त अरु घोर पराक्रम करि भवित चित्त जिनके, ते निःपाप मुनी|| श्वर मेरे अर्थि ज्ञानलाभने देवौ ॥२८॥
दुग्धमध्वमृतभोजनकृत्याः सर्पिषाश्रववचोऽभिनियुक्ताः ।
अण्वलाघववशित्वविदर्भा बोधिलाभमनघाः प्रदिशंतु ॥ २६६ ॥ बहुरि दुग्धस्रावी, मधुस्रावी अरु अमृत भोजन ऋद्धिका धारी, अरु सर्पिस्रावो वचनऋद्धिके धारी, अरु अणु-गुरु वश करनेवारी ऋद्धिके धारी ग्रन्थनके कर्चा निःपाप मुनीश्वर मेरे अर्थि ज्ञानलाभ देवौ ॥२६॥
कामरूपगुरुताप्रतिसातर्द्धहीनवसतिगृहयुक्ताः।
चारणा जलफलाग्निकसूता बोधिलाभमनघाः प्रदिशंतु ॥३०॥ बहुरि काम-रूप ऋद्धिके धारी, विस्तार अरु अन्तर्धान अरु अक्षीण पहालय ऋद्धिके धारी, अर जल फल अग्नि अरु सूत्र आदि चारण ऋद्धि के धारी जे हैं, ते निःपाप मुनीश्वर मेरे अर्थि ज्ञानलाभ देवौ ॥३:०॥
श्रात्मशक्तिविभवागतसर्वपौद्गलीयममताश्च्युतवस्त्राः।
सत्परीषहभटार्दनदास्ते बोधिलाभमनघाः प्रदिशंतु ॥ ३०१॥ अरु आत्मशक्तिके वधावनेवारे, पौद्गलिक भावरहित दिगंबर अरु बाईस परीषह-रूप पटनिके जेता, असे निःपाप मुनीश्वर मेरे अर्थि ज्ञानलाभ देवौ ॥३०॥ असें आठ प्रकार ऋद्धिधारीनके अर्थि अर्घ देना
ओं ही अष्टपकारसकलऋद्धिमाप्तभ्यो मुनिभ्योऽयम् । अब तीर्थंकरोंके आदि कहिये मुख्य गणधरका नाम लेय सर्व गणधरनके अर्थि प्रार्थना करिये हैं।
PRGESAROKAROBARMILARGACAS
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