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PACLAHA
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मित्रं सम्यक परभवयथाचक्रमे सार्थदायि ___ नान्यो धर्माद्दुरितदहन प्लोषणेऽबुप्रवाहः । जानंतं मां समदृशिधियां संनिधानाच्छरण्य
त्रायस्व त्वं त्वयि धृतिगतिं पूजनार्पण युक्तं ॥१६॥ ये धर्म परभवका गमनमैं भला मित्र है अरु साथ देनेवारा है, अरु यात अन्य कोई भी पापरूप दावानलका बुझावाने जलका प्रवाह नहीं है | ऐसा जान, मो. सम्यग्दर्शनज्ञानवानोंका समीप वासस है शरणागत वत्सल तू, तिहारी भक्तिमै धारण किई, गतियुक्त अरु पजाका अधैं | संयुक्त मोकू रक्षा कर ॥४६॥ ऐस धर्मशरणने अर्घ देना
ों ही धर्मशरणायाम् । सर्वा ते तान् तत्त्वचंद्रप्रमाणान् जापध्यानस्तोत्रमं रुदय॑ ।
द्रव्यक्षेत्रस्फूर्तिसजावकाशं नत्वार्पण प्रांशुना संस्मरामि ॥ १६॥ ये सर्व सप्तदश अहतमंगलादि जप ध्यान स्तोत्र मंत्रन करि पूजि द्रव्य-क्षेत्रकी प्रकटताका अवकाश नमस्कार करि विस्तीर्ण अघकरिस्परम करूंह, अर्थात पूजू हूँ॥४६॥ ऐस प्रथम वलयदेवनिपूर्णा देना
नों ही महत्परमेष्ठिमभृतिधर्मशरणांतप्रथमवलयस्थितिसप्तदशजिनाधीशयज्ञदेवताभ्योऽयम् ।
अथ द्वितीय वलये चतुर्विंशतिभूतजिनपूजा। प्रत्येकाओः। तथा हि-अब द्वितीय वलय स्थापित भूत जिनका प्रत्येक अर्घ सो ऐस है कि
निर्वाणदेवं श्रितभव्यलोक निर्वाणदातारमनंतसौख्यं ।
संपूजयेऽहं मखसिद्धिहेतो रधीश्वरं प्राथमिकं जिनेंद्रं ॥४७॥ में यज्ञकी सिद्धिके हेतु आश्रित जो भव्य लोक तिन निर्वाणका दाता अरु अनंत सुखका धाम ईश्वर ऐसा प्रथय निर्वाण जिनद् जो ताहि सम्यक् पूजू हूँ॥४७॥
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URANASI
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