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दोष लाग्या होय ताके समान ही यथावत् मालोचना पूर्व गुरुनते संभावना करिक रात्रि दिन जे वां दोपाकी यदि करे हैं वे पतीश || प्राचार्य अर्घका देवा करि मेरे अथि प्रसाब होहु ॥ ५७७॥
____ों ही प्रायश्चित्ततपोऽभियुक्ताचार्यपरमेष्टिभ्योऽयं । सदर्शनज्ञानचरितरूपप्रभेदतश्वात्मगुणेषु पंच
पूज्येष्वशल्यं विनयं दधानाः मां पातु यज्ञेऽर्चनया पटिष्ठाः ॥ ५७८ ॥ दर्शन ज्ञान चारित्र प्ररूपित भेदतें आत्म गुणनिविष पंचपरमेष्ठोनिमें निःकपट विनय धारते अर प्रवीण भाचार्य हैं ते इस यहमें पूजनक्रिया करि मोनै रक्षा करो।५७८॥
____ों ही बिनयतपोऽभियुक्ताचायपरमेष्ठिनेऽर्यम् । दिसंख्यसंघे खलु वातपित्तकफादिरोगकुमजातिसंधौ।
दयार्द्रचित्तान्मुनियेगितज्ञांस्तदुःखहंतृनहमाश्रयामि ॥ ५७६ ॥ दश प्रकार संघमें आचार्य उपाध्याय तपस्वी शक्ष्य म्लालादि मुनीनमें वात पित्त कफ आदिरोग तथा खेदसे उत्पन्न पोडाका संबंधने होता संता दया करि भीने हे चित्त जिनका अरु मुनीका मनोनिवासी दुःखने जाननेवारे अर तिनका यथोपचार दुःखने दूरि करवेवारे प्राचार्य परमेष्ठीने में आश्रय करू हूँ॥५७६ ॥
___ओं ही वैयावृत्त्यतपोभियुक्ताचार्यपरपेष्ठिनेऽघ। श्रुतस्य बोधं खपरार्थयोर्वा स्वाध्याययोगादवभासमानान् ।
आम्नायपृच्छादिषु दत्तचित्तान् संपूजयामोऽर्घविधानमुख्यैः ॥ ५८०॥ शास्त्रका अर्थकू आप वा परके अर्थि स्वाध्यायका योगते प्रकाशमान करते अर आम्नाय प्रश्न आदिमें दियो है चित्त जिनने, असे भाचार्यनिनै हम अर्घ आदि विधान करि पूजै हैं॥५८०॥
RECOREGARIWARRORE
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