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भविष्ठा
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अखंड जैसे होय तसे अनंग कामका हरणेवारा अरु सुविधिये है दूसरा नाम जाका ऐसा पुष्पदंत नवया जिनेंद्रन, सुंदर देहकी कांतिको मसार-वाराने नमस्कार होहु । अर जलादि द्रव्यन करि विधिसंयुक्त यजन करो॥५०३ ॥
ओं ह्रीं पुष्पदंतजिनाय अर्घम् । .... .... .... .... .... ....
.... .... .... .... .... ..... .... ॥५०४॥ अरु दशमा शीतलनाथ जिन पूजन करता प्राणीके धनधान्यकी समृद्धि है सो विस्तीगांतर होय है अरु हस्तगत होय लोटती फिरै है, यह मैंनें विचार करि यज्ञमैं वेदमंत्रोच्चारण-पूर्वक पूजिये है ॥ ५०४ ॥
प्रों हो शीतलजिनाय अर्घम् । श्रेयोजिनस्य चरणौ परिधार्य चित्ते संसारपंचतयदुर्भमणव्यपायः।
श्रेयोऽर्थिनां भवति तत्कृतये मयाऽपि संपूज्यते यजनसद्विधिषु प्रशस्य ॥ ५०५॥ श्रेयांसनाथका चरण चित्तमै विचारि करि कल्याणके अनिकै पंच प्रकार परावर्तनको दुर्धपणको नाश होय है, ता कार्यके अर्थि मैं | भी यज्ञविधि मैं प्रशंसा करि पूजूहूं ॥५॥
. ओं ह्रीं अयोजिनाय अघम् । इक्ष्वाकुवंशतिलको वसुपूज्यराजा यजन्मजातकविधौ हरिणार्चितोऽभूत् ।
तवासुपूज्यजिनपार्चनया पुनीतः स्यामद्य तत्प्रतिकृतिं चरुभिर्यजामि ॥ ५०६॥ जाका जन्म होता ही इक्ष्वाकुवंशको तिलक वसुज्य नाम राजा इंद्र करि पूजित होत भयो अरु मैं वासुपूज्य जिनकी पूजा करि पवित्र होत हूं, अब याकी प्रतियाने चरु प्रादिसे पूजू हूँ॥५०६॥
ओं ही वासुपूज्यजिनायाम् ।
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