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प्रतिष्ठा
१८०
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श्रीमती रेणुका है माता जाकी अरु कमलको है चिह्न जाके अरु उदारभाव युक्त सुंदर पुत्रवान् चंद्रबाहु देवेश जिने दुनैं नमस्कारकरि विधिव यज्ञका प्रयोगमें पूज़ हूं ।। ५५७ ।।
श्रीं हीं चंद्रबाहुजिनायार्घम् ।
भुजंगमं स्वीयभुजेन मोक्षपंथावरोहाद धृतनामकीर्तिम् ।
महाबलक्ष्मापतिपुत्रमर्चे चंद्रांकयुक्तं महिमाविशालं ॥ ५५८ ॥
अपना भुज पराक्रमकरि मोक्ष्यार्गका अवरोह धारण कियो सार्थक नाम जाने, अरु महाबल राजाको पुत्र, अरु चंद्रमाको है अंक जाके महिमावान भुजंगमनाथ तीर्थंकर नें पूज् हूं ॥ ५५८ ॥
ह्रीं भुजंगमजिनायार्घम् ।
ज्वालाप्रसूर्येन सुशांतिमाप्ता कृतार्थतां वा गलसेनभूपः ।
सोऽयं सुसीमापतिरीश्वरो मे बोधिं ददातु विजगद्विलासां ॥ ५५६ ॥
ज्वाला नाम माता याकरि शांतिने प्राप्त भई संती कृतार्थताने प्राप्त हुई अथवा गलसेन राजा कृतार्थ हुवो सो यो सुसीमा नगरीको स्वामी ईश्वर नामक तीर्थंकर तीन जगतमें विस्तीर्ण सी ज्ञान लक्ष्मीकू देवो ॥ ५५६ ॥
ओं ह्रीं ईश्वरजिनायार्धम् ।
नेमिप्रभं धर्मरथांगवाहे नेमिस्वरूपं तपनांकमीडे ।
वाश्चंदनैः शालिमप्रदीपैः धूपैः फलैश्चारुचरुप्रतानैः ॥ ५६० ॥
अरु धर्मरूप रथका चलावामें नेमिस्वरूप अरू सूर्यका चिह्नवान् भैसा नेमिप्रभ तीर्थंकरनें जल चंदन तंदुल पुष्प दीप धूप फलनिकरि अरु सुंदर नैवेद्यकरि पूजू हूं ॥ ५६० ॥
ह्रीं नेमिप्रभजिनायार्धम् ।
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पाठ
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