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पाग
अतिष्ठा
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राजत्सुराजहरिवंशनभोविभास्वान् वप्रांबिकाप्रियसुतो मुनिसुव्रताख्यः। ___ संपूज्यते शिवपथप्रतिपत्यहेतुर्यज्ञे मया विविधवस्तुभिरर्हणेऽस्मिन् ॥ ५१४॥ सुंदर है राजा जामै ऐसा हरिवंश रूप आकाशमें सूर्य समान अरु वभानाम माताका प्यारा पुत्र ऐसा मुनिसुव्रत जिनेंद्रने मोक्षपार्गकी का प्राप्तिका कारण जानि मैने इस यज्ञमें नाना वस्तुनि करि संपूजिये है ॥ १४ ॥
ओं ही मुनिसुव्रतजिनाय अर्घम् । सन्मैथिलेशविजयाह्वगृहेऽवतीर्ण कल्याणपंचकसमर्चितपादपद्म ।
धर्माबुवाहपरिपोषितभव्यशस्यं नित्यं नर्मि जिनवरं महसार्चयामि ॥५१५॥ ला पिथिला नगरीका विजय नाम राजाका गृहमैं अवतार पायो अरु पंचकल्याणकरि पूजित है चरण जाका अरु धरूपी मेघ करि पुष्ट । किया है भव्यरूप धान्य जाने ऐसा नमिनाथ स्वामीने निय उत्साह करि पूजू हूँ॥५१५॥
ओं ही नमिनाथजिनेंद्रायाघम् । द्वारावतीपतिसमुद्रजयेशमान्यं श्रीयादवेशवलकेशवपूजितांहिम् ।
शंखांकमबुधरमेचकदेहमर्चे सद्ब्रह्मचारिमाणनमिजिनं जलाथैः॥ १६ ॥ द्वारावती नगरीका पति समुद्रविजय राजा करि पान्या श्रीमान् यादववंशका स्वामी बल अरु नारायण करि पूजित है चरण जाका अरु शंख है चिन्ह जाकै अरु मेघ समान श्याम है देह जाका अरु महान् ब्रह्मचयधारीनमें प्रधान ऐसा नेमि जिनेंद्रन जलादि द्रव्यकरि पूजू हूँ॥१६॥
ओं ही नेमिनाथजिनायाघम् । काशीपुरीशनृपभूषणविश्वसेननेत्रप्रियं कमठशाव्यविखंडनेनं । पद्माहिराजविबुधवजपूजनांकं वंदेऽर्चयामि शिरसा नतमौलिनीतः॥५१७॥
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