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सुभद्रं च यशोभद्र भद्रबाहुं मुनीश्वरम् ॥ ३१४ ॥ लोहाचार्य पुरा पूर्वज्ञानचक्रधरं नमः। अर्हद्बलिं भूतबलिं माघनंदिनमुत्तमम् ॥ ३१५ धरसेनं मुनींद्रं च पुष्पदत्तसमाह्वयं ।
जिनचंद्रं कुंदकुंदमुमास्वामिनमर्थये ॥ ३१६॥ अरु सुभद्रा, यशोभद्र १, भद्रबाहु मुनि १, अरु लोहाचार्य १ प्रथमपूर्वका किंचित् ज्ञाताकै अर्थि नमस्कार करै हैं तथा अवलि १, भूत|| वलि १, माघनंदि १, धरसेन १, पुष्पदंत नामक मुनि १, जिनचंद्र १, कुंदकुद १, उमास्वापि १ जे हैं, विनर्ने प्रार्थना करूं हूँ ॥३१४-३१६॥ ऐसें अवार पंचपकाल-स्थित निग्रंथ वीतराग प्राचार्यनिनै वेदीका स्थापन विधानमैं अष्ट प्रकार पूजन करूंह। ऐसें अर्थ देनाओं ह्रीं ऐदंयुगीनदीक्षाधरणधुरंधरनिग्रंथाचार्यवर्यान् वेदीपतिष्ठाने संस्थाप्याष्टविधार्चनं करोमि स्वाहा । निग्रंथान् वकुशान् पुलाककुशलान् किंशीलनिगूंथकान् ।
मूलस्वोत्तरसद्गुणावधृतसाः किंचित्प्रकारं गतान् बंदित्वा जिनकल्पसूत्रितपदान् प्रध्वस्तपापोदयान्।
वेदीशुद्धिविधिं ददंतु मुनयो ह्यर्पण संपूजिताः ॥३१७॥ बहुरि निग्रंथ जे पुलाक, वकुश, कुशील, निग्रंथ हैं, तिनने मूलगुण-संयुक्त उत्तरगुणनि किचित प्रकार भेदन प्राप्त भये, अरु जिन कल्पसूत्रके पदारूढ़ अरु दुरि किये हैं पापका उदय जिननें ऐसे मुनीश्वरनकूबंदन करि अर्घ करि पूजित किये सते वेदीकी विशुद्ध विधि. देवो ॥ ३१७॥
ऐसें तीन घाटि एक कोटि मुनीश्वरनिके अर्थि अर्थ देना पर पुष्पांजलि क्षेपना
___ोंहीं पुलाकवकुशकुशीलनिग्रंथस्नातकपदधरत्रिकन्यूनैककोटिसंख्यमुनिवरेभ्योऽयम्। इति अघ पाद्य दवा वेदीशुद्धि प्रति॥ ज्ञानाय पुष्पांजलि चिपेत् ॥
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