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प्रतिष्ठा
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अब वेदीनकी प्रतिष्ठा कहिए हैं,—
अथ वेदीप्रतिष्ठा ।
मुहूर्त्तसिद्धौ कृतसिद्धभक्तिर्विलिख्य यंत्र सुविनायकाख्यं ।
aaai सिद्धमुनीश्वरर्द्धिश्रुतानि संस्थाप्य चरेत्सपर्याम् ॥ २६९ ॥
मैं पूर्वोक्त मुहूर्तनकी सिद्धि होतेसंत करी है सिद्ध भक्ति जाने असो यजमान वा इंद्र है सो आग कहेंगे असा विनायक नामक यंत्रनैं विलेखन करि अरु तीन छत्र अरु सिद्ध अरु मुनीश्वरांकी ऋद्धिनैं अरु श्रुतदेवतानें स्थापित करि पूजानें रचै ॥ २६२ ॥ प्रत्यूहनिर्णाशविधौ प्रसिद्धं गद्रवक्लाम्बुजगीतकीर्तिम् ।
यतं पुरापूजितमल नेयं पात्रे लिखित्वाऽपि कृतार्चनादि ॥ २६२ ॥
इहां वेदी यजमान सर्व विघ्ननका नाशमें प्रसिद्ध अरु गणधरादि करि गाई है कीर्ति जाकी अरु पहली ही प्रतिष्ठा प्राप्त भया सा यंत्रनैं ल्यावना योग्य है। यदि असा यंत्र नहीं मिले तो पात्रमें चंदनादिकसे लिखिकर भी अर्चन करना ॥ २६२ ॥
जय जय जय, निस्सही, निस्सही, निस्सही, वर्धस्व, वर्धस्व, वर्धस्व, स्वस्ति, स्वस्ति, स्वस्ति, वर्द्धतां जिनशासनं । णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं । चचारि मंगलं, अरहंतमंगलं, सिद्धमंगलं, साहुमंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं । चचारि लोगुत्तमा, अरहंत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा । चचारि सरणं पव्वज्जामि, अरहंतसरणं पव्वज्जामि, सिद्धसरणं पव्वज्जामि, साहुसरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामि ।
अब अनादिसिद्ध मंत्र का अर्थ कहें हैं
ॐ जयवंते वर्ती, ॐ जयवंते वर्ती, ॐ जयवंते वर्ती। मैं निःसहाय हूँ, मैं निःसहाय हूँ, मैं निःसहाय हूँ । वृद्धि प्राश होउ, वृद्धिकू ११
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पाठ
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