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प्रतिष्ठान गये हैं दोष-मल जिनतें ऐसे सिद्ध जे हैं, ते लोकका अग्रभागर्ने प्राप्त होय शास्वत शिवसुखने प्राप्त भये, अरु उत्तम माग गामी जे हैं,
तिन. अष्ट प्रकार पूजन करि पूज हूं ॥२८॥ ऐसे सिद्धलोकोत्तमके अर्थि अर्घ देना
ओं ही सिदलोकोत्तमाया। इंद्रनरेंद्रसुरेंद्रे रथिततपसां व्रतैषिणां सुधियां।
उत्तमपंथानमसावर्चेऽहं सलिलगंधमुखैः ॥ २८४ ॥ BU इंद्र नरेंद्र अरु सुरेंद्रनि करि प्रार्थन किया तप जे हैं, तिनका अरु व्रतका वांछक सुन्दर बुद्धिमानका उत्तम मार्ग नै नलग धादि अष्ट द्रव्यनि करि यो मैं हूँ सो पूज हूं ॥२४॥ ऐसे साधु लोकोत्तम-अर्थि अर्घ देना
___ओं ही साधुलोकोत्तपेभ्यः अर्घ म्। रागपिशाचविमर्दनमत्र भवे धर्मधारिणामतुलम् ।
उत्तममवतकामो वृषमर्चे शुचितरं कुसुमैः ॥ २८५॥ राग रूप पिशाचको मर्दन इस भवमें धर्मधारी पुरुषनके अतुल अप्रमाण होइ, ऐसा शुद्ध उत्तम धर्म नै पुष्पनिकरि पूजू हूँ॥॥ ऐसें केवली-प्रणीत लोकोत्तम धर्म के अथि अर्घ देना
ओं ह्रीं केवलिपज्ञप्तिधर्माय लोकोत्तमायाघम्। यहच्चरणमथाऽनंतजनुष्वपि न जातु संप्राप्तं ।
नर्तनगानादिविधिमुद्दिश्याष्टकर्मणां शांत्यै ॥ २८६ ॥ अनंत भवनिम कदाचित् भी न प्राप्त भयो ऐसा अरहंतका शरण जो है, ताहि नृत्य गानादि विधिनै उद्देश करि अष्टकम निकी शांतिके अर्थ में पूजू हूं ॥२६॥
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