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प्रतिष्ठा
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or विनिर्माणविधिः ।
अब बिंबनिर्माणकी विधि कहिये है
संस्थानसुंदरमनोहररूपमूर्ध्वप्रालंबितं ह्यवसनं कमलासनं च ।
नान्यासनेन परिकल्पितमीशविंबमहविधौ प्रथितमार्यमतिप्रपन्नैः ॥ १५१ ॥ वृद्धत्वबाल्यरहितांगमुपेतशांतिं श्रीवृक्षभूषिहृदयं नखकेशहीनं । सद्वाचिदृषदां समसूलभागं वैराग्यभूषितगुणं तपसि प्रशक्तं ॥ १५२ ॥ संस्थान कहिये अगोपांगकरि सुन्दर अरु कांति लावण्यकरि मनोहर कायोत्सर्ग धारी दिगम्बर तथा पद्मासन, याही अन्य ग्रासन कुकु - टादिकरि कल्पना किया जिनबिंब पूजाविधिमें सुन्दर मतिबारे जननिने योग्य नहीं कहया है बहुरि वृद्धपणा अरु वालपणा इनकरि रहित अरु शांतिभावने ग्रहण कीया अरु श्रीवृक्ष चिह्न करि भूषित है, हृदय जाका अरु नख केशकर हीन अरु धातु नाना प्रकार पाषाणनिकरि रचित अरु समचतुरस्र संस्थानयुक्त अरु वैराग्यकू भूषित करनेवाला, अरु तपकी अवस्थामें प्रशस्त ऐसा होय ॥ १५१-१५२ ।। यह युग्म है । ऊर्ध्वे द्विपाभ्रविधुभागकृतौ स्वकीयमानेन तव मुखमंडलमक्षिसोमं । ग्रीवादौ च चतुरक्षिमितौ हृदानुप्रेक्षाप्रमं जठरमत्र तु नाभिमूलात् ॥ १५३ ॥ तावत्प्रमैव मदनादि तदादि (भातु) जानुद्वयं करमितं च ततोऽपि गुल्फं ।
तस्माच्च पादतलमव हि गुल्फदेशात् पिंडिर्दृढा तु पदयोः शुभलक्षणांका ॥ १५४ ॥
ऊंचाई में कायोत्सर्ग प्रतिमामें द्विपकहिये आठ, अभ्रकहिये शून्य, विधु कहिये एक, अर्थात् १०८ भाग अपना प्रमाण करि होय है तहां | मुख मंडल गोलाकार बारह भाग प्रमाण है अर ग्रीवा अर हृदय, ये दोन्यू प्रत्येक चोईस भाग होय अर हृदयतें जठरताई बारहभाग नाभिपर्यंत होय, अर तावत् प्रमाण ही कि बारहभाग ही नाभितें लिंगमूल पर्यंत अरु तात गोडा पर्यंत एक हस्तमात्र अरु तातें भी टिकूरावां पय त एक हस्तमात्र, अरु बातें पादनिका तल पर्यंत एक इस्तमात्र होय अरु टिकोरायां की पिंडली, गाढ़ी (दृढ़) अरु शुभलक्षणकरि चिह्नत होय ।। १५३ - १५४ ॥
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