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MP में अभीष्ट कहता हूं। चारित्र भक्ति करता हूँ। उसकी आलोचनामें सम्यग्ज्ञानसे युक्त, सम्यग्दर्शनसे अधिष्ठित, सबमें प्रधान, मोक्षके मतिष्ठा 15 मार्ग स्वरूप, कोंकी निर्जरा करनेवाले, क्षमाके धारक, पांच महाव्रतोंसे संपन्न, तीन गुप्तियोंसे सहित, पांच समितियोंसे भूवित, ज्ञानध्यान
के कारण, सम्यक् चारित्रको सदा मैं पूजता हूँ, वंदना करता हूँ, नमस्कार करता हूं, (हे सम्यक्वारित्र!) मेरे दुःखोंका नाश हो, को-: का क्षय हो, बोधिकी प्राप्ति हो, सुगतिमें गमन हो, मुझे समाधिमरण मिले और जिनेंद्र भगवानकेसे गुणों को संपत्ति प्राप्त हो॥"
है पाठ
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अथ आचार्यभक्तिः। अब आचार्यभक्ति कही जाती है
देसकुलजाइसुद्धा विसुद्धमणवयणकायसंजुत्ता।
तुम्हं पायपयोरुहमिह मंगलत्थिं मे णिचं ॥१॥ देश कुल जातिसे शुद्ध, विशुद्ध मन वचन कायसे संयुक्त हे प्राचार्य तुम्हारे चरण कमल इस संसारमें पेरा सदा कल्याण करें ॥१॥
सगपरसमयविदुएहु आगमहेदूहिं चावि जाणित्ता । सुसमच्छा जिणवयणे विणएमुतागुरूवेण ॥२॥ बालगुरुबुड्ढसेहे गिलाणथेरेयखमणसंजुत्ता। अट्ठावयग्गअण्णे दुस्सीले चावि जाणित्ता ॥३॥ वयसमिदिगुत्तिजुत्ता मुत्तिपहे ठावया पुणो अण्णे । अज्झावयगुणणिलया साहुगुणेणावि संजुत्ता ॥ ४ ॥ उत्तमखमाइपुढवी पसण्णभावेण अच्छजलसरिसा । कम्भिधणदहणादो अगणी वाऊ असंगादो ॥५॥
KALASS
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