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प्रतिष्ठा है
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| उत्पातने उद्देश करि तीन दिन इस प्रतिष्ठामें वर्जनीक है ओर पूज्य पुरुष इस कार्यको स्थापनामें चरनक्षत्र अरु विष्टि योगमें होय तो सवथा वर्जित कहे हैं ॥१२२-१२३॥
सूर्येण वा चंद्रमसा कुजेनाष्टम्यंकशल्यानि शुभावहानि ।
बुधेन च द्वादशिका द्वितीया गुरुस्पृशो दिक्शरपूर्णिमाश्च ॥ १६४ ॥ बहुरि सूर्यवारा अष्टमी, सोमवारा नवमी, मंगल वारा तृतीया शुभ होय है। बुधवारा द्वादशी तथा द्वितीया अर गुरुवारयुक्त दशयो, पंचपो, पूर्णिमा होय सो श्रेष्ठ है ॥१६४॥
शुक्रेण षष्ठी प्रतिपत्प्रशस्ता चतुर्थिका वा नवमी शनिस्था।
सिद्धिं तथा चामृतयोगमुच्चैः प्रशस्तमाहुर्मुनयो निमित्तात् ॥ १९५॥ तथा शुक्रवारा षष्ठी वा पड़िवा शुभ है , अरु शनिवार चतुर्थो वा नवमी श्रेष्ठ है। उनमें सिद्धि योग अमृत सिद्धि होय तो मुनीश्वर निमितज्ञानतें अतिप्रशस्त कहें हैं ॥१९॥
सूर्यादितो वा भरणी च चित्रां तथोत्तराषाढधनिष्ठभं च ।
सदुत्तरां फाल्गुणिकां च ज्येष्ठामन्त्यं तथा जन्मभमेव मोच्यं ॥ १६६ ॥ बहुरि मय वारतें सप्तवारमें अनुक्रम करि भरणी १ चित्रा १ उत्तराषाढा १ धनिष्ठा १ उत्तराफाल्गुनी १ ज्येष्ठा १ रेवती १ त्याज्य है तथा जन्मनक्षत्र भी त्याज्य है॥१६॥
दग्धा तिथिः प्रयत्नेन वर्जनीया तथा शुभाः।
अमृताख्या अत्र योज्याः प्रतिष्ठाया महोत्सवे ॥ १९७॥ अर बड़ा प्रयवकरि दग्ध तिथि वजनीय है तथा शुभ अमृतादि योग ही प्रतिष्ठाका उत्सवमें उचित है ॥१७॥
क्रूरासन्ने दृषितोत्पातलूता विद्वा दुष्टाः पर्वसन्नोपपाताः ।
-CAREECUSECRECORRH
OROCARECHERE
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