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रिक्तास्वथो योगविशेषसिद्धया कार्याणि कुर्यात्सिनिवालिकां च । संवर्जयेत्सिद्धियुजं तथापि रुद्रामपि प्रांततिथिं विनेष्टं ॥ १८ ॥ जिनस्य यस्यान दिने प्रजातं कल्याणकं तन्नियमेन तत्र । तस्यास्तु तत्कार्यमथोत्तरायां पुनर्वसूपुष्यकरस्रवस्सु ॥ १०॥ अंत्येऽपि रोहिण्यजवाजिषु द्राक् चित्रामघाखातिभगांगमूलं।
कदाचिदंगीकृतमल चान्यत् गाह्य सुनक्षत्रमधीतिवाक्यात् ॥ १६१॥ पांच प्रकारकी तिथि वार नक्षत्र योग कर्णरूप दिनशुद्धि है तिसमें भी लग्नशुद्धित मुख्य करि निमित्तज्ञानोनकरि संकलित ऐसा दिनमें F पुराण पुरुषनिकरि कथित ऐसा दिनमें प्रतिष्ठाकी विधिने अग्रं विधान कर । अर मंगल दीत शनिवारनि छोड सर्व ही वार संस्थापनमें
प्रशंस्य है और सिद्ध अमृत आदि योगर्ने योजनकरि अमावस्याने सांगि कर्ता सुख भावने प्राप्त होय। रिक्ता तिथिके विषै भी योग विशे
पकी शुद्धि होय तो कार्य शुभ करै पूर्णिमानै वर्जित करै अर सिद्धि योग भी होय परन्तु एकादशी होय तो वर्जित है तथा मासांत तिथिविना ४ भी इष्ट कहिये है । अर जिस जिनंद्रका जिस तिथिमें जो कल्याण हुवा होय उस तिथिमें वह कल्याण इष्ट है और उत्तरा पुनर्वसु पुष्य हस्त
श्रवण इनमें अरु रेवती में, रोहिणी अश्विनी में शुभ योग तो ग्राहय है अरु चित्रा मघा स्वाति भरणो मूना भी कदाचित् आवश्यक कार्यमें अंगीकार किया है अर अन्य भी शुभयोगयुक्त नक्षत्र ज्योतिषीका वाक्यतै ग्रहण करना॥१८७-१६१ ॥
विष्कंभमूले शरनाडिका षट् गंडातिगंडे नव वज्रघाते। . व्यत्यादिपातं परिघं च सर्व विवर्जयेद् मुक्तिसुखाभिलाषी ॥ १६२ ।। भूकंपदिग्दाहनरशमृत्यूनुद्दिश्य घस्त्रत्रयमल वज्यं ।
चरेषु विष्टिप्रगतेषु नैवं प्रतिष्ठितिं प्रांचति पूज्यलोकः ॥ १६३॥ और विष्कंभ अरु मूलमें प्रथम पांच घड़ी वर्जित है अरु गंड अतिगडमें छह घड़ी, वज्र अरु घातमें नव घडी वर्जित है ओर मुक्ति सुखकी | वांछावालाने व्यतिपात अरु परिघ सर्व ही वर्जित करना योग्य है । अरु धरतीको कांपिवो अरु दिशाका दाह अरु भूपतिका मरण आदि
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