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अथ ग्रन्थान्तरोपनिबद्ध आचार्यादिभक्तिपाठ उल्लिख्यते। *अब यहां दूसरे प्रयसे उद्धृतकर आचार्यादि भक्ति पाठ लिखते हैं उनमेंसे सबसे प्रथम यहां सिद भक्तिका उल्लेख करते हैं
असरीरा जीवघना उवजुत्ता दंसणेय णाणेय ।
सायारमणायारा लक्खणमेयंतु सिद्धाणं ॥१॥ अर्थ-जिनके कोई शरीर नहीं हैं, जो अनंत दर्शन अनंत ज्ञानप्ते संयुक्त हैं, अंतिम शरीरके सदृश आकारवाले होकर भो निराकार हैं वे परपात्या सिद्ध भगवान हैं ॥१॥
मूलोत्तरपयडीणं बंधोदयसत्तकम्मउम्मुक्का।
मंगलभूदा सिद्धा अडगुणा तीदसंसारा ॥२॥ ज्ञानावरणादि पाठ कर्पोको मूल ओर उत्तर प्रकृतियोंके बंध उदय ओर सख सबसे जो रहित हैं, सम्यक्त्व आदि आठ निजी गुणोंसे भूषित हैं, जो संसारके आवागमन वा जन्म मरणसे विमुक्त हैं वे मंगलमय सिद्ध भगवान हैं ॥२॥
अट्टवियकर्मविघडा सीदीभृता णिरंजणा णिच्चा।.
श्रहगुणा किविकिच्चा लोयग्गणिवासिणो सिद्धा ॥३॥ जो आठ प्रकारके कांस विमुक्त हैं, निरंजन नित्य हैं, अष्ट गुणोंसे भूषित हैं, कृतकृत्य हैं, और लोकके अग्रभागपर विराजपान हैं ये | सिद्ध परमेष्ठी हैं॥३॥
सिद्धा णट्ठट्ठमला विसुद्धबुद्धी य लद्धिसब्भावा ।
तिहुअणसिरिसेहरया पसियंतु भडारया सव्वे ॥४॥ * भाषाटीकाकारने इन ७ मायामोका अर्थ नही लिखा है इसलिये इनका अर्थ हम लिख देते हैं ।-संपादक.
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