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गतिष्ठा
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वेदांगुलं भालन सोर्मुखस्य मानं तु घोणा चतुरंगुला च । मूर्धानमन्नतमत्र कार्यमदुर्विबं पृथुभालदेशं ॥ १५५ ॥
अरु च्यारि श्रगुल ललाट अरु नासिकाका प्रमाण कहया है अरु मुख विस्तार अरु नासिकाका विवर विस्तार च्यारि 'गुल जानो । तहां मस्तक किंचित नम्र करनो, अरु अष्टमीका चंद्र समान ललाट करना ।। १५५ ।।
वोरंतरं युग्मभागप्रमाणं तथा नेत्रयोः श्वेतिमा तत्प्रमाणं । सुतारास्थितिश्चैकभागे विभागा नसोर्मूलभागेऽक्षिणी युग्मभागे ॥ १५६ ॥
भंवरानिका अ ंतर दोय भाग प्रमाण तथा नेत्रनिका श्व तस्थल भी दोय भाग प्रमाण अरु तामध्य काली कनीनिका एक भाग प्रमाण तातें नेत्र तीन भाग प्रमाण है । अरु नासिकाका मूल भाग मैं नेत्रनिकी स्थिति दोय भाग प्रमाण जानो ॥ १५६ ॥
लते वेदभागायते मध्यतः स्थौल्ययुक्तेऽन्तिमे सत्कृशे धानुषे ।
नेत्रयोः पक्ष्मणी (यावता ) त्र्यंगुलं दृष्टितः कूलतुल्ये नदीनामिवोपर्यधः ॥ १५७ ॥ भंवारा च्यारि भाग प्रमाण विस्तृत होय अरु मध्यमें स्थूल अरु अन्तमें कुश धनुषाकार होय, अरु नेत्रनिकी वाफणी जहां तक तीन अंगुल दृष्टि पडै सो नदीका तट समान नीचै उपरि होय ॥ १५७ ॥
चांगुलमुच्छ्रितं स्यान्मध्ये तथा विस्तृतमव तुर्याः
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भागास्तु किंचिन्मिलितं द्विपार्श्वे किंचित्प्रकाशेऽतरुदीर्यमानं ॥ १५८ ॥ rai ला कार्धपृथ्वीनेत्रांगुलं स्याच्चिवुकं विशालं । मृलाद्वनोरंतरमस्य तद्ज्ञैर्वेदांगुलं द्वयंगुलविस्तरं स्यात् ॥ १५६ ॥
to दोन्यू ओष्ठ एक अंगुल मोटया अरु च्यारि भाग चोडा किंचित मिलित अरु दोन्यू पखवाडा किंचित् प्रकाशवान् अभ्यंतर उदीरित है प्रमाण जाका, ओष्ठकी अतिस्थिति नामक सृक्किणी एकांगुल होय अरु साढ़ा तोन भाग दाढीको नीचलो भाग सो चिवुक होय, अरु | विशाल होय, दाढीके अरु मुखके च्यारि अंगुल अन्तर अरु विस्तार दोय अंगुल होय ।। १५८-१५६ ॥
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पाठ
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