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तेवीसमो संधि (राम ) बोले-“भरतको सम्पूर्ण राज्य दे दिया गया है, हे माँ, अब मैं जा रहा हूँ, तुम अपना मन दृढ़ रखना; जो मैंने तुम्हें पोड़ा पहुँचायी, उसे तुम क्षमा करना।” जब रामने माँ से इस प्रकार पूछा तो 'हा-दा' कहती हुई अपराजिता महादेवी रोती हुई धरतीपर गिर पड़ी ।।१-९॥
[४] रामने जब माँसे इस प्रकार पूछा तो वह तत्काल अचेतन होकर मूच्छित हो गयी। हे माँ कहती हुई और रोती हुई दासियोंने हरिचन्दनसे उसे सींचा। चमर धारण करनेवाली स्त्रियोंने हवा की। बड़ी कठिनाई से वह सचेतन हुई । रानी अपना शरीर मोड़ते हुए इस प्रकार उठी, जैसे दण्डात म्लान नागिन हो । लक्ष्मण और रामके बिना व्यथित वह दुःखी होकर पुकार मचान लग:-."हे बलराम, हा-हा, तुमने क्या कहा १ हे दशरथकुलके दीप विश्वसुन्दर राम, तुम्हारे विना पलंगपर कौन बैठेगा ? तुम्हारे बिना कौन दरबारमें बैठेगा? तुम्हारे बिना अश्व और गजपर कौन चढ़ेगा? तुम्हारे बिना कौन गेंदसे खेलेगा ? तुम्हारे बिना राजलक्ष्मी कौन मानेगा? तुम्हारे बिना कौन पानको सम्मान देगा ? तुम्हारे बिना कौन शत्रुसेनाका नाश करेगा? तुम्हारे बिना कौन मझे सहारा देगा?" वह विलाप सुनकर मुखसे त्रस्त अन्तःपुर राम और लक्ष्मणके वियोगके कारण दहाड़ मारकर रो उठा ॥१-११॥
[५] तब इस बीच में असुरोंका मर्दन करनेवाले रामने अपनी माँ को धीरज बँधाया। "हे आदरणीये, धीरज धारण करो, रोती क्यों हो ? आँखें पोंछो । स्वयंको शोकमें मत डालो। जिस प्रकार रविकिरणोंसे चन्द्रमा प्रभावित नहीं होता उसी प्रकार मेरे होते हुए भरत अच्छा नहीं लगता। इसी कारण वनवासमें रहूँगा और पिताके सत्यका पालन करूँगा। दक्षिण देशमें स्थिति बनाकर, लक्ष्मण तुम्हारे पास आयेगा।" यह