Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
६२०
'पाइकों वह पहु कालु | कहिओ सि सि जो चारणेहिँ । सं सहछ मणोरह अज्जु जाय । यि जणनि हउँ गवभत्थु जइ सहुँ ताऐं महु पाक-पवरु | समर - महभय-भीसणेहिं ।
पचमचfte
हउँ चितु देव सामिसाल ॥ ४ ॥ सो क्खि सि लई लांग मेहिं ॥५॥ जं विट्ट सुहारा वे घि पाय ||५|| । विणिवाइड पिल मधु तड तड ॥ ७ ॥ उद्दालिउ समलङ्कार- जयरु || || सङ्खु पुष्व व वर- दूसणेहिं ॥ ५ ॥ घन्ता
विराहित 'पटु पसाउ महु पेसणहौँ ।
जय रुच्छ्रि-पसा हिउ भणइ तु खरु आयामी रणउ णामहि हउँ अमिट में दूसणहीं ॥१०॥
Nu
[4]
दुबई
संणिसुणेवि क्यणु विजाहरु सम्भोसिउ कुमारेण । 'बरु साब जाव रिड पामि एके सर पहारेण ॥ १ ॥
एउ सेण्णु खर-ण-र । वाणें हिं करमि अज्जु विवरे ॥२॥ लायमि सम्बु कुमार पन्थें ॥३॥ तमलङ्कार-णय मुञ्जावम' ॥ ४॥ चलहिं पठि सीसें लाएँ विकरु ॥५॥ पुच्छिउ मन्ति विमाणा ||६||
रुपणमस्तु कियञ्जलि-हरथव || || णं खय-काल कियन्तों मिकि ||८|| 'किं पढ़ें वइरि कमाविण दिड ||९||
घन्ता
स उ स वाहणुस पहु सहस्थे । सुज्नु वि जम्म-भूमि दरिलाषमि । हरिचवणेंहिं हरिसिङ विजाहरु । तावखरेण समरें पिम्बू हें । 'दीसह कणु एहु वीरधट । बाहुबले चलेण विवलिंगड | पण मन्ति विमाणं पट्ट
।
णामेण विराहि पवर-जसाहिद बियड-बच्छु थिर-धोर-भुउ | अगुराहा णन्दणु स-बलु सन्सन्दणु एँहु सो चन्दीभरही सुख ||१०||
1

Page Navigation
1 ... 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379