Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 337
________________ चालोमो संधि * दशरथ के पुत्र लक्ष्मणने श्रेष्ठ तीरसे शत्रुको उसके विशाल वक्षःस्थलपर आइत कर दिया, मानो मगरोंसे युक्त रेबानदीके जलप्रवाहने विन्ध्याचलको विदीर्ण कर दिया हो ॥१- १०॥ I [११] अतुल मल्ल खर और दूषणके गिर जानेपर, जिसमें उठे हुए पुच्छदण्डवाले मस वाहन जोर-जोर से चिल्ला रहे है ऐसा अशेष सैन्य भी पराजित हो गया। लड़ते हुए उसके साथ सात हजार लोग मारे गये, और दूषणके साथ सात हजार विदारित हुए। इस प्रकार चौदह हजार राजा मारे गये, मानो वे समान दिये गये हो। राजा छत्रों से धरती ऐसे मण्डित हो गयी, जैसे कमलोंसे शरद लक्ष्मी शोभित होती हैं । कहीं भूमि रक्तसे आरक्त दिखाई दी मानो केशरसे विभूषित विलासिनी हो तो इसी बीच में, जिसके रथ और गज वाहन है ऐसी विराधितकी सेनामें कल-कल उठा। जिसमें आनन्दकी भेरी बजायी गयी हैं ऐसे रणकी, लक्ष्मणने परिक्रमा की। ( वह बोला ) "हे चन्द्रोदर पुत्र, तुम मेरा कहा करो | एक मुहूर्त के लिए तुम युद्धमें तबतक रहो कि जबतक मैं वैदेही सहित अपने प्राणप्यारे भाई को खोज लूँ ।" खरदूपणको मारकर, जिनका जयकार कर लक्ष्मण रामके पास गया, मानो त्रिभुवनका घात कर उसे यसपथपर लाकर कालकृतान्तके सम्मुख गया हो ॥१-१०॥ [१२] लक्ष्मणने रामको सीताके शोकसे परिपूर्ण देखा । धरतीमण्डलपर तूणीर, वाण और दाथसे छोड़ा गया धनुष पड़ा हुआ था । वियोग शोक सन्तप्त चह भग्नदन्त गजके समान, हिन्नडाल पेड़के समान, फणसमूहसे रहित सर्पके समान, वज्र से नष्ट गिरिके समान, राहुसे पीड़ित चन्द्रमाके समान, बिना पानी के मेघ के समान वनमें विषण्ण देह थे ।

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