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वायाकोसमो संधि
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कर फिर कल्याणमालाको अभय बचन देकर, नर्मदा छोड़कर, विन्ध्याचल में प्रवेश कर, रुद्रभूतिको अपने चरणोंमें झुकाकर वालिखिल्यको उसके नगरमें स्थापित कर रामपुरी में चार माह् बसकर, धरणीधरकी बेटी से विवाह कर, अतिवीर्यको वीरता चूर-चूर कर, क्षेमांजलि नगर में प्रवेश कर, वहाँपर भी पाँच शक्तियों को स्वीकार कर, अरिंदमन राजाका मुख काला कर, लक्ष्मण-सीता और राम विजयके साथ इस प्रकार आये और दण्डकारण्य में पहुँचे, मानो मत्तगज हों ॥१-९॥
[३] उसी समय, संयम नियम और धर्मसे संयुक्त मुनिगुप्त और सुगुप्तको बनमें आहार दान देकर, देवरत्नोंकी वर्षा करवाकर, पक्षी (जटायु) के पंख स्वर्णमय कराकर, वीर सम्बुकुमारको मारकर जब हम लोग वहाँ (दण्डकारण्य में) क्रीड़ांके लिए रह रहे थे, एक कुमारी अपनी लीलासे आयी । जैसे हथिनी हाथो के पास, वैसे ही वह पास पहुँची। फिर वह निर्लज्ज बोली- 'मुझसे विवाह करो।' राम और लक्ष्मणके द्वारा तिरस्कृत होकर, फिर थोड़ी दूर जाकर वह बिलख उठी । वह अपने विलापोंके साथ खरदूषण के पास गर्यो । वे भी कुमारोंके साथ युद्धमें लड़े । युद्ध में लक्ष्मण सिंहनाद किया या नहीं, वह शब्द सुनकर राम उसी क्षण दौड़े ॥१-८॥
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[४] जब तक वह लक्ष्मणकी खोज करने गये, तबतक निशाचरेन्द्र के द्वारा मैं हर ली गयी। आज भी जनोंके मनों और नेत्रोंको आनन्द देनेवाले राघवचन्द्रके पास मुझे ले जाओ ।" इस प्रकार जब सीता देवीने दशरथ और जनक, लक्ष्मण-राम और भामण्डलका नाम लिया तो विभीषण राजाका मन काँप उठा, ( वह बोला ) – कि "जो कुछ कहा गया है, वह तुम लोगोंने सुना । सुना । मैं उन्हें मारकर आया था, लेकिन नहीं, वे तो भ्रम उत्पन्न कर जीवित हैं। लो मुनिवर के कथनका प्रमाण आ