Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 368
________________ २६. . पङमचरित पुणु कल्याणमाल मम्भीसें वि। णम्मय मेहले वि विम्स पईसेवि ॥३॥ रुभुति णिय-अलग हि पावि । वालि खिल्लु णिय-जयरहों धाहें वि॥॥ रामउरिहिं चढ़ मास सेप्पिण। धरणीधरहों धीय परिणेपिणु ॥५॥ फेच वि अश्वीरहों योरपाणु । पइसरेवि खेमालि-पटश ॥५॥ तेस्धु वि पञ्च पहिच्छे वि सत्तिड । सन्तुदवाणु मसि-चपणु पवित्ति: ।।७।। हरि-सीय-चलाइँ आयइँ सजई आइयई। गं मत्त-गयाइँ दण्डारण पराइयाँ ।।८।। [३] तहि मि काले मणि-गुस-सुगुप्सहँ । संजम-णियम-धम्म संजुसहँ ॥ ॥ वर्ण आहार-दाणु दरिसावें वि । सुरघर-स्यण-वरिसु परिसा विधा॥ पक्लिहें पक्ख सुषण्ण समारं वि | सम्वुकमारु वीरू संघार वि ।।३।। अच्छहुँ जाव तेत्थु वण कौलए। एक कुमारि आय णीय-लीला |४ पासु वकिय करिणि व करिणही । पुणु णिलन भणह 'म परिणहाँ "॥५॥ वल-णारायणेहि उपलक्खिय । पुणु थोवन्तरें जाय चिलक्षिय ||६|| गय खर-दूसणाहुँ कुवारहि। भिडिय ते विसहुँ समरें कुमार हि ॥ घत्ता किं मुक्कु ण मुफ्कु सोह-माउ रणे लक्खणण । तं सद्दु सुणेवि रामु पधाइन तकखणेण ॥८॥ [४] गज लक्षणहाँ गधेसर जावें हिं। हउँ अवहरिय णिसिम्दे तायें हिं॥१॥ भन्नु घि अण-मण-यणाणन्दहौं । पासु प्येहु मइँ राषचन्दहो' ॥२॥ लहस गाउँ जं दसरह-जगहुँ । हरि-हरूहर-मामपाल-तणयहुँ ॥३॥ चिनु विहासण-रायहाँ डोलिलउ । 'तुम्हें हि मुयउ सुथाउज वोल्लिउ ॥ ३॥ तेह आंज आसि विणिवावि । णघर जियन्ति मन्ति उप्पावि ॥५॥ सुक्कु पमाणही मुणिवर-भासिड | जिह "खट लक्षण-रामद्दों पासिउ"॥६॥

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