________________ पायालीसमो संधि [12] "किसी दूसरेसे मैंने यह बात सुनी है कि रावणके भवनमें निःसन्देह जो जो राजा हैं और कितने ही कपिध्वजी हैं, जाम्बवन्त, नल, सुग्रीव, अंग, अंगद आदि; वे विराधितके साथ वनवास करनेवाले बलदेव और वासुदेवसे जा मिले हैं।" यह सुनकर दशाननके अनुचर मारीचने मन्त्रीसे कहा-“यह तुमने अयुक्त बात कही। रावणको छोड़कर तुम किसी दूसरेका पक्ष मत लो। खरके द्वारा कोई अनंगकुसुम नामको कन्या बलवान हनुमानके लिए दी गयी है यह क्या ससुरका वैर भूल गया जो डरकर शत्रुपक्षसे मिल जायेगा ?" तब इसी बीच विभीषण कहता है.---"तुम खाली वचन कितना कहते हो ! इस समय वह कार्य करना चाहिए कि जिससे लंकाके राजाको बचाया जा सके।" इस प्रकार कहकर उसने चारों दिशाओं और नगर में आशाली विद्या घुमवा दी। देवोंके लिए भी दुलंध्य दृढ माया प्राकार बनवा दिया और स्वयं निशाचरराज निःशंक राज्य भोगने लगा // 1-11 // आदित्यदेवीकी प्रतिमासे उपमित स्वयम्भूकी पत्नी श्रादित्याम्बाके द्वारा लिखाया गया दूसरा अयोच्या काण्ड समाप्त हुआ |