Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 378
________________ ३१० पउमचरित अपणुएं गिसुभ बत्त मई एहिय । रावण-मन्दिर जीसन्देहिय ॥१॥ जे जे परवाह के इ कहदय । जम्बवणल-सुग्गीवशाय ॥२॥ समज विराहिएण वण-सेवहुँ।। मिलिया वासुए व-बलएव हुँ' ॥३॥ सं णिसुणेवि दसाणण-मिरचें । दुबई पञ्चामुहु मारिपचे ॥३॥ 'एह मजुत्त पस पई अक्खिय। रावणु मुवि ण अण्णहाँ पक्षिय॥५॥ का वि अणकुसुम बलवन्तहों। दिण्णी खरेण धीय हणुवन्तहाँ ॥३॥ है कि माम-वहरु वीसरियउ। जे पडिवप मिलाइ मय-वरियड'॥७॥ तो एस्थातरे मण विहीसणु । 'केत्तिा चबा घयणु सुण्यासणु ॥८॥ एवहिं सो उबाल चिन्तिज्जइ। लम-णाटु जंग रविवजह ॥५॥ एम भणेवि चारिसु ताडिय । पुर भासालिय विज्ञ भमातिय ॥३०॥ घत्ता तियसहु मि दुलघु दिनु माया-पायारु किउ । जोसच णिसिम्दु रज्जु स यं भुजन्तु थिउ ॥११॥ अउज्झा कण्डं समत्तं ! आइचुएवि-पडिमोषमाएँ आइच्चश्विमाए ( ? ) । वीअमउन्मा-ऋपटु सयम्भु-धरिणी केहवियं ॥

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