Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 377
________________ मायालीसमो संधि थी। उस प्रदेशमें सीतादेवीको प्रतिष्ठित कर दशानन चला गया-विरह से झीण, विसंस्थुल विमन और अत्यन्त दुमैन । कामदेवके बाणोंसे जर्जर और व्वरयुक्त जिसे निवारण करना कठिन है। सैकड़ों बार दूतियाँ आती हैं और जाती हैं । कठोर और मधुर शब्दोंसे उसका गुख सूखता है, वह खिन्न होता है, क्षोभ-क्षोभमें वह गिरता है, जुआड़ीकी तरह पीड़ित होता है। वह सिर धुनता है, हाथ मोड़ता है, शरीर मोहता है, कौंपता है। अधर पकड़कर ध्यानमग्न हो जाता है । कामके स्वरमें बोलता है । गाता है, बजाता है, हर्ष-विषाद दिखाता है, पारबार मूच्छित होता है, मरण-अवस्थाको दिखाता है । चन्दनसे सींचा जाता हैं, चन्दन लेप दिया जाता है । चामरोंसे हवा की जाती है फिर भी मनसे झूरता रहता है । एक रावण क्या, जोजो गर्वसे गरजा है. जिनवरश्रेष्ठको कोडकर भाग देदो हार कौन पराजित नहीं हुआ। ॥१-९।। __ [१५] रावणके विरह-विह्वल होनेपर श्रेष्ठ मन्त्रिमण्डल में चिन्ता व्याप्त हो गयी कि उस लक्ष्मणके कुपित होनेपर, यहाँ प्रतिमल्ल कौन है कि जिसे एक क्षणमें असिरत्न सिद्ध हो गया, जिसने शम्बु, दूषण और खरको मार डाला, पृथ्वीपर वह कोई सामान्य मनुष्य नहीं है। सहस्रमति नामका मन्त्री कहता है-"रामके द्वारा, अथवा साधन सहित लक्ष्मणके द्वारा, अथवा रथ, तुरग, गजवाहनोंके द्वारा, दुस्तर और लहरोंसे भयंकर कठिनाईसे संचरण योग्य सागर और जलों में कैसा ग्रहण ( प्रवेश)? रात्रणकी सेना महा प्रबल है। उसमें एक-एक वीर दुःसह हैं । दूषण या शम्बुके मर जानेसे क्या ? शृंदसे समुद्रका क्या होता है ? यह वचन सुनकर. और इंसफर पंचानन ( मन्त्री ) कहता है-.-"क्या कहते हो, एक है ? जो एक हैं वह हजारोंको मारता है ।" ||१-९||

Loading...

Page Navigation
1 ... 375 376 377 378 379