Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 370
________________ पउमचारड एवं वि करहि महारउ दुप्सउ । उत्तिम-पुरिसहुँ एउप जुसउ ७॥ एक्कु विणासु अण्णु लजिज्ज । धिखिकार लो पाविजह ॥6॥ धत्ता णिय-किसिहें राम सायर-रसण-स्खलन्तियहै। में माहि पाय तिहुयणे परिसमन्तियाँ ॥९॥ । [५] रावण जे रमन्ति परदारई। दुवई से पावस्ति अपार ॥१॥ अस्तेि सप्त गरम भर-भोसण । हसहसहसहमम्स सन्दुवासण ॥२॥ हुहुहुहुहुहुहुहम्त स-उपदछ । सिमिसिमिसिमिसिमन्त-किमि-कदम।३। रयणि-सफर-पालुय-पङ्क-पह। धूमप्पह-तमपह-तमतमपह ॥४॥ सहि असराल कालु अच्छेवर। पहिला उवहि-पमाणु मिवेवट ॥५॥ तिणि सत्स वीस रउर। सत्तारह बावीस समुराई ॥६॥ पुणु तेतीस-जलहि-परिमाणई। जहिं दुक्रवइँ गिरि मेरु-समाणहूँ ॥७॥ जो पुणु णरउ णिगोड सुणिजह । मइणि जाव ताव तहिं हिजइ ॥६॥ ते कम्जे पर-दारु ण रम्मइ । संमिजद जं सुगहि गम्मइ' ॥९॥ पत्ता आरुटु दसासु 'किं पर-दारही एह किय । तिहुँ खण्डहुँ माझे अक्नु पराय कवण्य तिय' ॥१॥ तो अवहेरि करेवि विहीसण । चहिउ महम्गएँ सिजगविह्वसप्पं ॥१॥ सीय षि पुष्फ-विमाणे चहाविय । पटणे हष्ट-सोह दरिसाविय ॥२॥ संचलउ प्णिय-मण-परिओसें । मल्लरि-पडह-तूर-णिग्घोसें ॥३॥ 'सुन्दरि पेक्खु महारत पट्टणु । वरुण-कुवेर-बोर-दलबष्णु ॥३|| सुन्दरि पेक्खु पेयख चा-बारई। णं कामिणि-वयप स-विचार ॥५॥

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