Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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पउमचरिउ
३६४
- सुन्दरि पेक्रस पेक्खु घय छलहुँ। सुन्दरि पेष महास्व राखलु । सुन्दरि करहि महारज बुत । सुन्दरि करि पसाउ लाइ चेलिङ ।
घसा
महु जीवित देहि वोल्लहि षणु सुहाषणउ | रायवर खन्धे लहू महए िपसाहणउ
१०॥
सम्पदन्तु इय सेजऍ 'केति यिय-रिद्धि मदावहि । एवं जं रावण रज्जु तुहार । जं पट्टणु सोमु सुदंशु |
|
एड जं सउलु ण- सुहरु । जं दावा खणें जोन एउ जं कण्ठड ड स मेहल रहबर-तुरय- गइन्द्र-सयाइ मि |
पफुलियाँ जाइँ समयसम् ॥६॥ हीर- गहणु मणि खम्भ रमाउलु ॥७॥ लह चूडउ कण्ठ कहिसूस 14 चला घोड हरिकेलि ॥१॥
[]
दोच्छिउ रावणु राहव-भज्जएँ ॥१॥ अप्पर जवाहों मजा दरिलावहि ॥ २ ॥ तं महु तिण-स सं महु म
-समाणु हलुआर ॥ ३ ॥
पाएँ जमसासणु ॥ ४ ॥
तं महु णाइँ मसाणु भयङ्करु ॥५॥
से
महु महों जाएँ विस भोयणु ॥१६॥ सील-विहँ तं मलु केवलु ॥ ॥ आहिं मसु पुणु गणु ण काष्ट मि ॥८॥ घत्ता
समधिकारें जहिं चारितहों खण्ड | कि समलहणेण महु पुणु सोलु जें मण्ढणउ ॥ ९ ॥
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जिह जिह विषय आपण पूरई । 'विहिते देइ जं विद्दिषउ । उम्मेण क्रेण संखोदिउ ।
सिंह हि रावणु हियएँ विसूरह ॥१॥ किं व जाइ जिलाऍ लिहियर ॥ २ ॥ जाणन्तो वि तो चि जं मोहिउ ॥ ३ ॥
विधि अलिमियकुमारि विलोणी । बुग्ण-कुरङ्गि जेम मुह दोणी ॥४॥

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