Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 366
________________ पजमचरित बसा पिंहुरे समाचडिएँ ऍहु को साहम्मिय-पच्छलु । जो म धीरव पुवाड कासु स हे भुध-चलु' ॥१॥ बायालीसमो संधि पुणु वि विहीसQण तुम्घयण हिं रावणु दोच्छछ । तेस्धु पडन्तरेण आसपणउ होएं वि पुच्छइ । 'अक्लहि सुन्दरि वत्त भिन्ती । कहि आगिय नहुँ शुरथु स्त्रम्सी ॥१॥ कासु धीय कहि को मुम्हह पई'। अवख बाहन्तु विहीसणु ॥२॥ 'कवणु मसुरु कहि को तुह देवरु । अस्थि पसिद्ध को तुह माय ॥३॥ सप्परियण कहि सुहुँ एकचली 1 अक्सहि केम वणसर भुल्ली ॥१॥ के काजग वष्यवासु पट्टी । चक्केसरण केम तुहुँ दिट्टी ॥५॥ किं माणुसि कि खेयर-णन्दिप्पी। किं कुमील कि सीलाही भायणि ॥६॥ अण्णु चि कवणु तुम्ह देसरता। कहादि विचार विणियय-फहन्तर'॥७॥ एम विहोसण-धयण सुविणु। लग कहेग्मएँ जिम णिसुणइ जा॥८॥ पत्ता 'अह किं बहुएण लहुअ वहिगि भामण्डलहों। हउँ सीयाएवि जणयहाँ मुअ गेहिणि वलहों ॥१॥ वन्धे वि राय-पटु मरहेसहो। तिणि विसंघल्लिय वणवासीं ॥१॥ सीहोयरहों मढफर मम् वि। दसउर-णाहहाँ णिय-मणु रु. ॥२॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379