Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 362
________________ २५ पउमचरित जाणन्तो वि तो वि से सुजाहि । गेहें विपर-कलत्त कहिं सुजमहि ।। जाम ण अयस-पहहु उभासद । जाम ण लक्षाणयाँ विणासह ।।२।। जाम ण लपवण-सीह विरुज्झइ । जाम ण राम-कियन्तु विज्म ॥३॥ जाम प सरवर-धोरणि सन्धह। जाम तोणा-झुअलु णिवा || जाब ण वियस-उरस्थलु मिन्दाइ। जाब ण पाहुदण्ड त छिम्दइ ||५|| सरवरें हसु जेम दल-विमलर। जाव ण तोडइ दस-सिर-कमलइ ।।६।। जाम ण गिद्य-पम्ति गिबह । जाम पण णिसियर-बलु भावइ १७॥ जाम ण दरिसावह धय-चिन्ध । जाम करणे पञ्चन्ति कवन्धर ॥८॥ घन्ता जाम " आइयणें कपिजाहि वर-णाराहि । ताव गराहिवद पड राहयचन्दहाँ पायहिं ॥५॥ [ १५ ] नं णिसुणवि आरुह्य दसाणणु। जवणे गनमाणे वागणु ॥ilk कोवाणल-पलितु लकेसह । चिन्तह विजाहर-परमेसा ॥२॥ 'किं जम-सासण-पन्थें लायमि । कि उसग्गु जिपि दरियामि ॥३॥ अवये भत्र-बसेण इच्छेसाइ। महु मयणग्गि समुल्हावेसह' ॥४॥ तहि अबसरे स-तुरअ स-रहरु। गड उरधवणहाँ ताम दिवायरु ॥५॥ आय रति णाणाविहरूब हि। अट्टहास मेलिन्त हिं भूएहि ॥६॥ खर-साणउल-विराल-सियाले हिं। बहु-चामुण्ड-हाड-वेया हि ॥७॥ रवरयस-सीह-वग्य-भय-मण्हें हि। मेस-महिस-धस-तुरय-णिलण्ड हि॥८॥ सं उवसग्गु णिएवि मयावणु। ती विण सीयह सरणु दसाणणु ॥१॥ वोरु उद्दु क्षाणु संचूर हिं। थिय मणे धम्म-झागु भाकर वि॥१०॥ घत्ता 'जाव ग णीसरिय उवसग-भयहाँ गम्मीरही। ताक णिवित्ति महु चविह-आहार-सरीरहों ॥११।।

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