Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 360
________________ ३५२ पउमचरिठ [१३] पुणुपुणुरुचे हि जणयहाँ धीयरें। णिभच्छिय मन्दोपरि सीयएँ ।।३।। 'केतिउ वारवार बोलिन। चिन्तिब मणेण त किया ।।२।। बा वि अम्ज़ करवस हि कप्पहाँ । जइ विधवि सिव-सागही अपहों ।। अइ वि बलम्ते हुभासणे मेल्लहों। जइ वि महग्गय-दन्ते हि पेशहाँ ॥५॥ तो वि सलहों वहाँ दुशिय-कम्महीं । पर-पुरिसहों विविसि इह जम्मही ॥५॥ एक्कु जि णिय-मत्तारु पहुबह। जो जय-सच्छिएँ खणु वि ण मुबह।। जो असुरा-सुर-अण-मण-बल्बहु । तुम्हारिसहुँ कुणारिहि दुल्लहु ॥७॥ जो णरवर-मइन्दु भीसावणु। भणु-लगुल-लोक-दरिसाषणु ॥८॥ धत्ता सर-णहरारुण धणुवेय-लाषिय-जीई । दहमुह-मस-गउ फाडेवउ राहब-सोहे' ||५|| [१] रामण-रामचन्द-रमणीयहुँ । जाम दोल्ल मन्दोबरि-सीयहुँ ॥१॥ नाव दुसाणणु सयमेवाइड हस्थि व गङ्गा-णि पराइउ ||२|| मसल व गम्ब-लुद्ध विहडफड। जाणइ-षयण-कम-रस-लम्पट ||३|| करयल धुणइ झुणइ बुकार1 खेहु कोवि देवि पञ्चार ॥॥ विष्णत्तिएँ पसाउ परमेसरि । हउँ कषणेण हीणु सुर-सुन्वरि ।।५।। किं सोहग्गे भोग्गै कणड । किं पिरुयउ कि अस्थ-विहणउ ॥६॥ कि लाषणे घणं हीणड । किं संमाणे दाणे रणे दीणड ॥७॥ को करनेण फेण ण समिच्छति । जें महवि-पटु ण पहिच्छहि ।। पत्ता राहव-गेहिणिएँ णिम्भच्छिड णिसियर-राण । 'ओसर दहषयण दुहुँ अम्हहुँ जणय-समाणउ ॥९॥

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