Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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पउमचरित
अण्णु वि सयलु एड अन्तेउरु। सालङ्कारु सन्दौर स-णेउरु ॥३॥ अट्ठारह सहास वर-विलयहुँ । णिश्च-पसाहिय-सोहिय-तिलयहुँ ॥॥ पायहुँ सव्वहुँ तहुँ परमेसरि। गोसावषणु रन्जु करि सुन्दरि ॥॥ रावणु मु धि अपणु को चङ्गर। रावणु मुऍवि कवणु-तणु-अहङ ॥६॥ रावणु मुएंचि अण्णु को सूरड। पर-बल-महशु कुलासा-पूरउ ।।॥ रावणु भएँ वि अपणु को वलिया । सुरवर-णियह जेण पविखलियत ॥४ रावणु मुवि अणु को भस्लउ । जो तिहुयणहाँ माल एक्कालउ ॥९॥ रावणु मुऐं वि अण्णु को सूह। जापेक्वेवि मयणु वि दूसउ :॥
धत्ता तहाँ कसरहों वलय-हर दोहर-जयणडों । भुजहि सयल महि महएवि होहि दहषयणहों' ॥१॥
[ १२ ] तं तह कडुअ-वयणु आयपणवि। रावणु जीविउ विण-समु मणे थि॥१॥ सोल-बलेण पलिय पाई कम्पिय | रूस वि णिटलुर घयण पम्पिय ॥२॥ 'हले हल का काइँ पर युत्तउ । उत्तिम-णारिह एड पप जसड ॥३॥ किह दइवहीं दूअत्तणु किंजइ । एण णाई महु हासङ दिग्जह ॥४॥ मम्बुद्ध नहुँ पर-पुस्ति-पइन्डो। ते कज्जें महुँ देहि दुबुद्धि ॥५॥ मस्थऍ पडउ वज्जु तहाँ जारहों। हर पुणु भसिवन्त मत्तारही' ॥३॥ सीयाँ वयणु सुणे वि मणं डोलिय । णिसियर-णाह-णारि पडिवोल्लिय ॥७॥ 'जइ महावि-पट्ट ण पहिलाह। जह लशाहिउ कह चि ग इच्छहि ॥
चत्ता तो कन्दन्ति पई तिल तिल करवस हि कप्पन । अपणु महत्तऍण णिसियर, विहों वि अप्पह' ||९||

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