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. चालोसमो संधि
[१७] तबतक खरदूषणका जो प्रचण्ड वीर पुत्र सुण्ड था, उनका निवारण करनेवाला, वह तैयार होकर अस्त्र लेकर नगरके द्वारपर स्थित हो गया। जब भयानक युद्ध-मुख में सुण्ड स्थित हो गया तो रामका बलरूपी समुद्र दौड़ा। कल-कल शब्द उठा। युद्ध करती हुई दोनों सेनाओंके बीच जिसमें हाहा शब्द किया जा रहा है, जो बजाये गये शतशंखों और कंसालोंके कोलाइलसे पूर्ण है, काहल, टहरी, झल्लरी, मर्दल, उत्कट बजती हुई भंमीस, भेरी, सरंजा और हुडुक्कासे व्याप्त है, प्रसाधित गजोंके गण्डस्थलसमूह गरजते हुए गम्भीर भयानक आवाज छोड़ते हुए और बजते हुए घण्टोसे जो युक्त है, जिसमें महावत और पैदल सैनिक गिरा दिये गये हैं, वक्षःस्थल छेद दिये गये हैं, जो लीलापूर्वक रथचक्रों, धरतीमें गड़ते
और हिलते हुए चिह्नावलियों, स्वर्णदण्डोंसे उज्ज्वल है, जिसमें चामरसे हवा की जा रही है, जो योद्धाओं सहित है, जिसमें रथोंकी बड़ी-बड़ी पीठे हैं ऐसा युद्ध होने लगा। जो हिलते हुए अश्वोंके ऊँचे कानोंवाला है, जो चल, चंचलांग
और अत्यन्त दुर्जेय है, दुर्धर दुदर्शनीय है, अश्वौंका ऐसा बल महीमण्डलपर आवर्त दे रहा था। हलिहल-मूसलाम, कोंतों, अधेन्दु, शूलों, बावल्ल और भालों, सीरों, शल्योंसे जो विदीर्ण
और भयंकर है, जिसमें आँतोंकी माला झूल रही है, और बिना सिरके धड़ जिसमें नचाये जा रहे हैं। जिनमें एक दूसरेपर कलह बढ़ रहा है, ऐसे युद्धयशके अधिपति सुण्ड और बिराधित, पस महायुद्धमें धरतीके लिए प्रहार करने लगे भानो भरत और बाहुबलि ही प्रहार कर रहे हों ।।१-२।। ___ [१८] तब चन्द्रनखाने युद्ध करते हुए अपने पुत्रको मना किया कि "वरदूषण और शम्बुकुमारका वध करनेवाला योद्धा यह है। हे सुण्ड, युद्ध करनेसे काम नहीं होगा। जीवित रहनेपर