Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
३४६
जं सुहुत्र-संसारै ममन्त हुँ ! जै सुम-सास पेष्टन्तहुँ । सुहु एयाण-मुह कन्दरें | जं मुहु फणिमाणिक्कु खुहन्त हुँ । जाणतो वि तो वि जड़ वच्छहि ।
जं
सुहु पखाणण दाखन्तरे ॥ ५५ ॥ तं सुदु एह पारि भुअन्तहुँ | ५ || सो कजेण क्रेण महूँ पुच्छहि ॥७॥
स पासि किं को वि वलियढ । जेण पुरन्दरो वि पविखलियड ॥ ८
पउमचरिउ
जे जसु भाव अवि असुन्दर
धत्ता
नहीं सं अणुराउ ण भज्नड़ |
सुहुत्र॥१७ असिपअन्तहुँ ॥४॥
।
तहु दिट्छु एक्कु मर्दै सुणिवरु । तासु पार्से वउ उ ण मअम अव एण काहूँ मन्दोभरि । जइ मग्गहि धागु षण्णु सुनण्णठ ज आरहितुरङ्ग गइन्देहिँ । जन माहि णिक्कण्टउ रज्जु ।
[<]
मणिय णारि विरिलिय- पायर्णे ॥१॥
तं शिसुषि वयणु दवयर्णे । 'जयहुँ गयउ आसि अचलिन्दहों । वन्दण- हसिऍ दरम-जिणिन्दशों ॥२॥ गाउँ अणन्तवीरु परमेसरु ॥१३॥
पहुँ करें तं छज्ज' ||९||
[
तं निसुर्णेवि वयणु दहवथनहीं । 'हो हो सच्चु को जग दूह |
मण्डऍ पर कलन्तु पउ अमि ॥ ४ ॥ जइ जम्दन्ति नियहि खङ्कारि ॥५॥ राउल रिद्धि- विद्वि-संपण्ण ॥ ६॥ जइ बन्दिज्जइ, घणि वन्दे हिं ॥ ७ ॥ जकिर माँ विजियन्तण कज्जु ॥ ८ ॥
घ
सयन्ते रहो जइ इच्छद्दि र रण्डत्तणु ।
तो वरि जाणइ सम्दोयरि करें दूअत्तणु ॥१॥
]
पणिय मन्दोयर पुरि मयणहीं ॥१॥ पहूँ मेहलंबिणु अण्णु प सूहउ ॥२॥
|

Page Navigation
1 ... 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379