Book Title: Paumchariu Part 2
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 333
________________ चालीसमो संधि ३२५ दोनों यशके आकर थे। दोनों ही महाभट थे। और अनुद्धत थे। दोनों घनुधर थे। दोनों दुर्धर थे। दोनों ही यशके लोभी अमर्षसे क्रुद्ध और त्रिभुवनमल्ल इस प्रकार भिड़ गये, मानो तमसमाते हुए मुखवाले अमरेन्द्र और दशानन आपस में भिड़ गये हों ॥१-१३॥ [८] तब लक्ष्मणने युद्ध में भयंकर अर्धन्दु शस्त्र छोड़ा, मानो त्रिभुवनजनका झय करनेवाला काल ही क्षयकाल में दौड़ा हो । आकाशके समान बाण चला। शत्रुके रथके पास पहुँचा। खर किसी प्रकार बच गया। सारथि आहत हो गया । श्वज दण्ड छिन्न-भिन्न हो गया। धनुष भी भग्न हो गया। किसी प्रकार लगा-भर नहीं। चिमान गिरा दिया विद्याके साथ । खर रथहीन हो गया। केवल तलवार है सहायक जिसकी, ऐसा रह गया । वह तुरन्त दौड़ा अपना मुख तमतमाला हुआ । यहाँ भी अस लक्ष्मणने उस सूर्यहासको प्रकाशरूपमें अपने हाथमें ले लिया । दोनों तलवार लेकर आपसमें भिड़ गये । नाना प्रकारके स्थानों और अपने-अपने विज्ञानोंके साथ, जिन्होंने हाथ में तलवारें प्रहण कर रखी हैं, ऐसे वे दोनों युद्ध करने लगे। वे ऐसे जान पड़ रहे थे, मानो नवपावसमें बिजलीसे विभूषित, श्याम अंगवाले मेघ दिग्याई दे रहे हों ॥१-१२|| [२] ऊपर जिसकी सूंड उठी है ऐसे हाथ के समान, जिसको पूंछ कन्धेसे लगी हुई है, ऐसे सिंह के समान, निष्ठुर पहाड़ के समान, अत्यन्त खारे समुद्र के समान, साँपके समान अत्यन्त

Loading...

Page Navigation
1 ... 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379