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सत्ततीसमो संधि दूसरा ज्योतिषचन आ पहुँचा हो ॥१-१०॥
[१६] जब आकाशके आँगन में दानवसमूह दिखाई दिया तो बलदेवने लक्ष्मणसे पूछा, "नभके अग्रभागमें यह क्या है ? क्या स्वर्गसे किन्नरसमूह चल पड़ा है ? क्या कोई महान् पक्षी हैं ? या विशिष्ट मेघखण्ड है ? क्या बन्दनाभक्ति के लिए. देवसमूह जा रहा है ?” यह शब्द सुनकर लक्ष्मणने कहा"हे राम, यह शत्रुओका चिह्न दिखाई दे रहा है। जिसका सिर तलमारसे गिरा दिया गया है, शायद उसका कोई आदमी पीछा कर रहा है।” जबतक उनमें आपसमें ये बाते हो रही थी कि इतनेमें खरने लक्ष्मणको ललकारा कि जिस प्रकार तूने शम्बुकुमारके प्राण लिये उसी प्रकार अब हे पाप, इन आते हुए थाणोंको स्वीकार कर । जिस प्रकार सड्गको लिया है, और दूसरेकी स्त्री ( चन्द्रनखा) का उपभोग किया है हे पुंश्चलीपुत्र, उसी प्रकार प्रहार कर, प्रहार कर । खरके समान एकसे एक प्रधान चौदह सौ बोद्धा टूट पड़े। जिस प्रकार हाथी सिंहसे, उसी प्रकार वे ललकारकर लक्ष्मणसे भिड़ गये ||१-५|| _ [१३] इसी बीच में योद्धाओंको चकनाचूर करनेवाल लामणने रामका जय-जयकार किया और कहा, "हे देव, आप प्रयत्नपूर्वक सीताको रक्षा करें; मैं मृगोंके झुण्डकी तरह सेनाको पकड़ता हूँ। जन्न मैं सिंहनाद करूँ, तब धनुधेर सहायक आप आना।" यह वचन सुनकर हँसते हुए मुख से श्रीरामने उसे आशीर्वाद दिया-हे वत्स, शम्बी और चिरायु होनी । स्वकार विजय लक्ष्मीरूपी वधू तुम्हारे हाथ लगे।" यह सुनकर शत्रुका मर्दन करने वाले लक्ष्मणने चैदेहीको प्रणाम किया। यह सुनकर सीताने इस प्रकार कहा-"जिस प्रकार जिनेन्द्रने पाँच इन्द्रियों, बाईस परीषह और चार कषायों, जरा, जन्म और मरण तथा मन, वचन और कायका नाश किया, जिम