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चालीसमो संधि सुव्रत) की मैं बन्दना करता हूँ | जो साधनरहित हैं, जो कषाय और शोकका नाश करनेवाले हैं, जो बाधारहित हैं, प्रमाद और मायाके बाधक हैं, जो दुष्टोंसे अवन्दनीय हैं और 'अलोक-लोक द्वारा बन्दनीय हैं। जो दुष्टोंसे अपूज्य हैं, परन्तु इन्द्रराजके द्वारा पूज्य हैं । जो शासन (उपाध्याय) से रहित है, फिर भी त्रिलोकके पण्डितोंके शासक हैं। जो वर्जनाओंसे रहित हैं, फिर भी अपेय पेयों (मद्य मधु) का वारण करनेवाले हैं। जो निद्रारहित हैं, विश्वके प्रभु हैं, अनिन्दित हैं, जो महान् अन्तवाले हैं, और प्रचण्ड कामदेवका हनन करनेवाले हैं । जो सुन्दर है, जो मेघ, अलि और केशके रंगके समान हैं। ऐसे जो शभगतिगामी मुनिसुव्रत स्वामी है उन्हें प्रणाम कर, अब पुनः कहता हूँ, कि किस प्रकार लक्ष्मणने महाषलवाले खरदूषणके बलको परास्त किया ॥१-११॥
२] यहाँ सीताका अपहरण कर लिया गया। और यहाँ रामको महान् वियोग हुआ । यहाँ लक्ष्मण युद्ध में भिड़ गया,
और यहाँ युद्ध में विराधित मिला । तबतक इस भयंकर वनमें, जिसमें एक दूसरेको हकारा जा रहा है, जिसमें कठोर दृष्टि और वचनोंसे योद्धा उद्भट हैं, जिसमें विस्तृत सैन्य समूह रचित हैं, जिसमें चेष्टा करते हुए देव भयसे भास्वर हैं, जर्जर अंग होनेपर भी, जो प्रहारके लिए अपने हृदयमें आतुर हैं । जिसमें तलवार और बाहुओं सहित तलवारें पड़ी हुई हैं, जिसमें अत्यन्त कठोर और तीव शब्द बोले जा रहे हैं, जिसमें गजोंके मम्तक टूट चुके हैं और शरीर विगलित हैं, सिरोंके काँपनेसे जिसमें अश्व आहत है, जो रक्त बिन्दुओंस इस प्रकार लग रहा है, जैसे देवोंके द्वारा मथा गया समुद्र हो, जिसमें छत्रों और दण्डोंके सौ-सौ टुकड़े हो चुके हैं। जो हडियों और धड़ोंके समूहसे आच्छादित है, ऐसे उस घोर भयंकर महायुद्ध में